शुक्रवार, 6 मई 2011

न्यायपालिका में भाई भतीजावाद :एक गंभीर प्रवृत्ति





यूं तो जब भी न्यायपालिका में छिपे भ्रष्टाचार की बहस छिडती है तो बात घूमफ़िर कर इस मुद्दे पर जरूर आकर अटक जाती है कि न्यायपालिका में भाई भतीजावाद की प्रवृत्ति जम कर चलन में है । न सिर्फ़ न्यायिक नियुक्तियों में ही इस भाई भतीजावाद के चलन ने स्थिति को नारकीय बनाया हुआ है बल्कि एक ही न्यायालय में न्यायाधीशों के रिश्तेदारों , भाई , भतीजों द्वारा वकालत किए जाने के कारण भी इस बात की आशंका हमेशा बनी रहती है कि वे अपने संबंधों का लाभ अपने मुकदमों में जरूर उठाते हैं । 

सबसे हैरानी की बात ये है कि बार बार विभिन्न बार एसोसिएशनों द्वारा इस बात को उठाए जाने के बावजूद भी न तो सरकार द्वारा न ही खुद न्यायपालिका द्वारा इस संबंध में कोई ठोस कदम उठाया जाता है । उलटे ऐसी बातों को अपने प्रभाव से दबाने की कोशिश की जाती है । पिछले वर्षों में कई प्रदेश के न्यायालयों में ये बात सूचना के अधिकार के सहारे सामने लाई गई है जिसके बाद अपेक्षित रूप से खूब विवाद हुआ । किंतु उसे भी येन केन प्रकारेण दबा दिया गया । अब एक बार फ़िर से ये मामला सुर्खियों में है । 

सरकार को भी इस समस्या का पूरा भान है और शायद इसीलिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन करने की तैयारी की जा रही है । इससे जहां न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता आएगी वहीं केंद्रीय लोक सेवा आयोग की तरह काडर प्रणाली तथा स्थानांतरण की व्यवस्था से काफ़ी हद तक इस भ्रष्टाचार से निपटा जा सकेगा । सरकार को और खुद न्यायपालिका को भी चाहिए कि लोकतंत्र के एकमात्र बचे हुए थोडे से मजबूत स्तंभ को संबल देने के लिए इस व्यवस्था को जल्द से जल्द अमल में लाने का प्रयास किया जाए ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. न्यायपालिका में यह बीमारी बहुत गहरी है। साफ होने में बरसों लग जाएंगे।

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  2. न्यायपालिका में भयंकर व शर्मनाक स्तर का भ्रष्टाचार पूरी इंसानियत के लिए खतरे की घंटी है...हर जज की सामाजिक जाँच करके उसके क्रिया कलापों की जाँच हर साल करना आवश्यक बनाया जाना चाहिए ..जजों की संपत्ति की जाँच का अधिकार हर नागरिक को दिया जाना चाहिए...

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  3. " dinesh raiji sahi farmaya is bimari ko saaf karne me samay chahiye ..

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  4. श्री अजय कुमार झा जी, आपने बिलकुल सही कहा है.मुझे अपने केसों के दौरान ऐसे अनुभव हो रहे हैं.आज भ्रष्टाचार की शिकायत करने पर आपके सारे काम रोक दिए जाते हैं और आपको सारे भ्रष्टाचारी एकत्रित होकर आपका शोषण करने लग जाते हैं.ऐसा मेरा अनुभव है,अभी 5 मई 2011 को तीस हजारी की लीगल सैल में मेरे साथ बुरा बर्ताव हुआ और सरकारी वकील ने जान से मारने की धमकी पूरे स्टाफ के सामने दी थीं, क्योंकि इन दिनों बीमार चल रहा हूँ.इसलिए फ़िलहाल इसकी उच्च स्तर पर शिकायत करने में असमर्थ हूँ.लेकिन भ्रष्टाचारियों के हाथों मरने से पहले 10-20 भ्रष्टों को लेकर जरुर मरूँगा.आप सभी को यह मेरा वादा है.सरकारी वकील की शिकायत क्यों करनी पड़ी इसको देखने के लिए उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से देखे.

    अगर मुझे थोडा-सा साथ(ब्लॉगर भाइयों का ही) और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ क्योंकि अपने 17 वर्षीय पत्रकारिता के अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ कि-अब प्रिंट व इलेक्टोनिक्स मीडिया में अब वो दम नहीं रहा. जो उनकी पहले हुआ करता हैं. लोकतंत्र के तीनों स्तंभ के साथ-साथ चौथे स्तंभ का भी नैतिक पतन हो चुका है. पहले पत्रकारिता एक जन आन्दोलन हुआ करती थीं. अब चमक-दमक के साथ भौतिक सुखों की पूर्ति का साधन बन चुकी है. यानि पत्रकारिता उद्देश्यहीन होती जा रही है.


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  5. प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
    दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
    श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
    क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
    अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
    यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?

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