बुधवार, 30 अप्रैल 2008

जमानत प्रक्रिया को जाने

पुलिस , क़ानून, कचहरी, के सन्दर्भ में जो शब्द सबसे ज्यादा चर्चा के दायरे में रहता है वो है जमानत। दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों के विभिन्न चरणों में कभी किसी को ख़ुद की जमानत लेनी होती है तो कभी किसी का जमानती बनना पड़ता है। जमानत वो ढाल है जो किसी को सजा मिलने तक या कहें की अपराध का दोषी करार दिए जाने तक जेल की काल-कोठारी में जाने से बचाता है। जमानत की पूरी प्रक्रिया को जानने समझने से पहले जानते हैं की आख़िर जमानत होती क्या है , एवं ये कितने प्रकार की होती है आदि आदि।

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा ४३६ से शुरू होकर कई धाराओं में पूरी जमानत प्रक्रिया, जमानत के आदेश का स्वारूप, जमानती के लिए शर्तें आदि का वर्णन है, हालांकि आम लोगों की समझ और जानकारी में जमानत मुख्यतया दो प्रकार की होती है। एक पुलिस बेल और दूसरी कोर्ट बेल, जिसमें अग्रिम जमानत यानि जिसे anticipatory बेल कहते हैं या फ़िर स्थाई जमानत। सीधे सरल शब्दों में कहा जाए तो छोटे-मोटे या कम गंभी अपराध में जब पुलिस को ये विश्वास हो जाता है की वांछित व्यक्ति समय पड़ने पर और बुलाये जाने पर उपस्थित हो जायेगा तो वह एक छोटी राशी के बंधपत्र पर उसकी जमानत ले लेता है। इसके लिए व्यक्तिक जमानत यानि स्वयं की जमानत या फ़िर किसी पड़ोसी, रिश्तेदार या जाने वाले की जमानत दी जा सकती है।

क्रमशः ..............

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