बुधवार, 5 नवंबर 2008

तलक लेने से पहले -भाग १

कहते हैं की वैवाहिक जोड़ी का निर्णय स्वर्ग में होता है और ये गठबंधन एक या दो नहीं बल्कि सात जन्मों का होता है, लेकिन बदलते सामजिक परिवेश में पारिवारिक और नैतिक मूल्यों के पतन न परिस्थिति को बहुत बदल दिया है। अब जहाँ विवाह भी विज्ञापन आधारित प्रस्तावों में से मनोनुकूल चयन बनकर रह गया है तो वहीं तलक उस तथाकथित सात जन्मों के गठबंधन से पलभर में मुक्ति का माध्यम बनकर रह गया है। आज हालत ऐसे हो गए हैं की कभी पश्चिमी सभ्यता के सामाजिक जीवन की साधारण प्रक्रिया समझा जाने वाला तलाक अब भारितीय समाज विशेषकर शहरी समाज में भी बहुत बढ़ रहा है.देश भर में तलाक की बढ़ती घटनाओं के कारण अदालतों में इतने मुकदमें लंबित हो गए हैं की इनके लिए विशेष पारिवारिक अदालतों का घतःन किया गया है। ज्ञात हो की जहाँ ऐसी अदालतें नहीं हैं वहां जिला एवं सत्र न्यायालय की अदालत ही ऐसे मुकदमें देखती है। एक आम व्यक्ति , पुरूष या महिला , ,यदि तलाक लेने का निर्णय ले ही चुके हैं तो उसे किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, किन किन बातों के लिए तैयार रहना चाहिए इस अंक में बताने का प्रयास करूंगा।

सबसे पहले आपको ये बता दें की पारिवारिक अदालतें मुख्यतया किन मुकदमों को देखती सुनती हैं। हिंदू , मुस्लिम तथा अन्य सभी धर्मों के व्यक्तियों के तलाक संबन्धी मामले, द्द्म्पत्य आधिकारों की पुनर्स्थापना, तथा तलाक की याचिका के साथ लगे भरण-पोषण या निर्वाह संबन्धी दावे का निपटारा । इसके अलावा अन्य विवाद जैसे संतानों की अधिकारिता, संपत्ति पर हक़, आदि हेतु अन्य दीवानी अदालतों ,में अर्जी दाखिल की जाती है। एक सबसे महतवपूर्ण बात ये की भार्तिये समाज में परिवार के टूटते- बंधन तथा तलाक की बढ़ती घटनाओं से चिंतित अदालतों ने भी इस परिप्रेक्ष्य में एक अनिवार्य नियम अपना लिया है। किसी भी तलाक अर्जी की सुनवाई से पहले अदालतें अपनी और से दोनों पक्षों में सुलह की कोशिश करती हैं। राजधानी समेत कई स्थानों पर तो इसके लिए बाकायदा मध्यस्थता केन्द्र बनाये गए हैं।

यदि सुलह सफाई के सारे प्रयासों के बाद भी स्थिति वही की वही रहती है तो बेहतर तो यही होता है की हिंदू विवाह अधिनियम १९५५ के प्रावधानों के तहत दोनों पक्ष आपसी सहमती से तलाक अर्जी के माध्यम से ही तलाक लेने का प्रयास करें। हालाँकि ये सच है की पारिवारिक जीवन में दाम्पत्य रिश्तों के अन्दर जब दूरियां और कड़वाहट बढ़ जाती है तो फ़िर किसी भी संयक्त प्रयास की गुंजाईश कम रहती है किंतु समय और पैसे की बचत के दृष्टिकोण से आपसी सहमती से तलाक अर्जी के माध्यम से ही तलाक लेना जरूरी रहता है। इसके लिए सबसे पहली जरूरी बात ये की दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष का निवास स्थान वहां होना चाहिए जहाँ अदालत की अधिकारिती होती है। आपसी सहमती तलाक अर्जी के लिए दोनों पक्षों को एक साथ बैठ कर संयुक्त याचिका तैयार करनी चाहिए। इसमें दोनों का सम्पूर्ण विवरण, वैवाहिक जानकारी , यदि बच्चे है तो उनके बाबत सारे बातें, भरण-पोषण की बाबत खर्चे की रकम का ब्योरा, एकमुश्त या किस्तों में आदि सब कुछ सिलसिलेवार ढंग से लिहना होता है। सामान्यतया हिंदू विवाह अधिनियम के धारा १३ (१) (अ) एवं १३ (१) (बी) के तहत दो याचिकाएं दाखिल की जाती हैं किंतु दोनों याचिकाओं के बीच कम से कम छ माह का अन्तर होना आवश्यक है।

क्रमश..........

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपने एक वकील की हैसियत से बेहद उम्दा जानकारी दी । लेकिन दुआ कीजिए कि किसी को बनते कोशिश इसकी ज़रुरत ही ना पडॆ । बहरहाल तथ्यपर्क जानकारी उपलब्ध कराने का शुक्रिया

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  2. Thnq sir muje khud ko apni wife se talak lena h q ki m uske lrne or shq krne ki aadt se preshan jo chuka hu muje job tk nahi ki ja rehi h hr time ladai hi mere dimag pr rehti h maine apni wife ko khush krne ki sari kosis kr li hi h bt us kosis se kvl 1-2 din hi shanti rehti h fir sb halat VAISE hi ho jate h please gave me reply ki muje kya krna chiye

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    1. आप मानसिक प्रताड़ना को आधार बना कर तलाक की अर्ज़ी दायर कर सकते हैं

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  3. सर,
    अगर कोई लड़का लड़की लव मेरिज करते ह और लड़के को बद मे पता चलता ह की लड़की कोई आपराधिक कार्य ( जूठे बलात्कार के मुकदमे दर्ज करा कर पेसे ठगना.. बेंक मे जाल्साजी करना....फर्जी आधिकारि बनकर जाल्साजी करना ) करती हे तो क्या लड़का तालाक ले सकता ह ?

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    1. हाँ इस आधार पर तलाक की अर्जी दायर की जा सकती है

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  4. Meri shadi ko 3month hue h or m 2month pregnant hu..bt muje Apne pati s talaqe chye.ap muje advise kre m kya kru

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    1. आपने ये नहीं बताया कि आप तलाक क्यों लेना चाहती हैं , कारण बताने के बाद आधार बनाया बताया जा सकता है

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