रविवार, 9 नवंबर 2008

अब अदालतें भी चलेंगी डे एंड नाईट

अदालतों को मुक़दमे के बोझ से मुक्ति दिलाने के लिए बहुत से वैकलिपिक उपाय अपनाए जा रहे हैं, और उनका परिणाम भे धीरे धीरे सामने आ रहा है। अदालतों के बदलते स्वरुप और नई तकनीकों पर जल्दी ही एक अलग विस्तृत आलेख लिखूंगा। बहुत पहले ही पश्चमी देशों के तर्ज़ पर सांध्य कालीन अदालतों के गठन के बात चली थी ,
मगर जैसे की यहाँ हर नयी योजना का हश्र होता है सो इस योजना के लागोकरण में खासे डेरी हुई, मगर गुजरात के बाद अब राजधानी की जिला अदालतों में भी जल्दी ही सांध्य कालीन अदालतें शुरू होने जा रही हैं, फिलहाल तो ये सिर्फ़ दो अदालतों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू की जा रही हैं, जिनका परिणाम देखने के बाद इन्हें आगे भी बह्दय जाएगा। ये शाम की अदालतें पाँच बजे से लेकर आठ बजे तक चलेंगी।

जहाँ तक इनमें मुकदमों की सुनवाई की बात है , जैसे की भाई दिनेस जी अपने चिट्ठे तीसरा खम्भा में भी जिक्र कर चुके हैं की आज किसी भी अदालत के लिए लोन वाले चैक बाउंसिंग के मुक़दमे की बढ़ती तादाद ही सबसे बड़ी चुनौते बनी हुई है, सो निर्णय ये किया गया है की सबसे पहले इनसे ही निपटा जाए। इसलिए इन सांध्यकालीन अदालतों में १३८ नेगोसिअबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत आने वाले मुकदमों का निपटारा किया जागेगा। चैक की राशि के हिसाब से अलग अलग अदालतों में इनकी सुनवाई की जायेगी। विदित हो की सबसे ज्यादा मुक़दमे , विभिन्न बैंकों, और लोन प्रदाता कम्पनियों के हैं और इनके लिए भी विशेष व्यवस्था करते हुए इनकी सुनवाई अलग कर दी गयी है, ताकि एक आम आदमी को इनके बीच न पिसना पड़े।

इन सांध्यकालीन अदालतों का दूसरा फैयदा ये होगा की जो लोग दिन में अपने काम काज की वजह से अदालत नहीं पहुँच पाते हैं , उनके लिए ये आसान हो जायेगा की अपना काम निपटने के बाद वे अदालत की तारीख भी भुगत सकेंगे। ये ऐतिहासिक कदम अदालत के और लोगों के कितने काम आत्येगा ये तो भविष्य की बात है , किंतु इतना जरूर है की इन उपायों से ये तो लगता है की अदालतें भी अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझते हुए सारे उपाय करने को प्रत्बध हैं.

शनिवार, 8 नवंबर 2008

वकालत : गरिमा खोता एक विशिष्ट पेशा


पिछले दिनों वकालत से जुडी कुछ घटनाएं एक के बाद एक ऐसी घटती चली गयी, की उन्होंने मुझे मजबूर कर दिया की मैं सोंचू की आख़िर कभी समाज का अगुवा बना एक विशिष्ट और प्रबुद्ध वर्ग में आख़िर ऐसा क्या आ गया की आज स्थिति ऐसी बन गयी है, और तो और राजधानी की अदालतों में पिछले कुछ महिनू में नकली वकीलों की घटना ने तो सकते में डाल दिया है ।
* छपे हुए आलेख को पढने के लिए उस पर क्लिक करें.

बुधवार, 5 नवंबर 2008

तलक लेने से पहले -भाग १

कहते हैं की वैवाहिक जोड़ी का निर्णय स्वर्ग में होता है और ये गठबंधन एक या दो नहीं बल्कि सात जन्मों का होता है, लेकिन बदलते सामजिक परिवेश में पारिवारिक और नैतिक मूल्यों के पतन न परिस्थिति को बहुत बदल दिया है। अब जहाँ विवाह भी विज्ञापन आधारित प्रस्तावों में से मनोनुकूल चयन बनकर रह गया है तो वहीं तलक उस तथाकथित सात जन्मों के गठबंधन से पलभर में मुक्ति का माध्यम बनकर रह गया है। आज हालत ऐसे हो गए हैं की कभी पश्चिमी सभ्यता के सामाजिक जीवन की साधारण प्रक्रिया समझा जाने वाला तलाक अब भारितीय समाज विशेषकर शहरी समाज में भी बहुत बढ़ रहा है.देश भर में तलाक की बढ़ती घटनाओं के कारण अदालतों में इतने मुकदमें लंबित हो गए हैं की इनके लिए विशेष पारिवारिक अदालतों का घतःन किया गया है। ज्ञात हो की जहाँ ऐसी अदालतें नहीं हैं वहां जिला एवं सत्र न्यायालय की अदालत ही ऐसे मुकदमें देखती है। एक आम व्यक्ति , पुरूष या महिला , ,यदि तलाक लेने का निर्णय ले ही चुके हैं तो उसे किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, किन किन बातों के लिए तैयार रहना चाहिए इस अंक में बताने का प्रयास करूंगा।

सबसे पहले आपको ये बता दें की पारिवारिक अदालतें मुख्यतया किन मुकदमों को देखती सुनती हैं। हिंदू , मुस्लिम तथा अन्य सभी धर्मों के व्यक्तियों के तलाक संबन्धी मामले, द्द्म्पत्य आधिकारों की पुनर्स्थापना, तथा तलाक की याचिका के साथ लगे भरण-पोषण या निर्वाह संबन्धी दावे का निपटारा । इसके अलावा अन्य विवाद जैसे संतानों की अधिकारिता, संपत्ति पर हक़, आदि हेतु अन्य दीवानी अदालतों ,में अर्जी दाखिल की जाती है। एक सबसे महतवपूर्ण बात ये की भार्तिये समाज में परिवार के टूटते- बंधन तथा तलाक की बढ़ती घटनाओं से चिंतित अदालतों ने भी इस परिप्रेक्ष्य में एक अनिवार्य नियम अपना लिया है। किसी भी तलाक अर्जी की सुनवाई से पहले अदालतें अपनी और से दोनों पक्षों में सुलह की कोशिश करती हैं। राजधानी समेत कई स्थानों पर तो इसके लिए बाकायदा मध्यस्थता केन्द्र बनाये गए हैं।

यदि सुलह सफाई के सारे प्रयासों के बाद भी स्थिति वही की वही रहती है तो बेहतर तो यही होता है की हिंदू विवाह अधिनियम १९५५ के प्रावधानों के तहत दोनों पक्ष आपसी सहमती से तलाक अर्जी के माध्यम से ही तलाक लेने का प्रयास करें। हालाँकि ये सच है की पारिवारिक जीवन में दाम्पत्य रिश्तों के अन्दर जब दूरियां और कड़वाहट बढ़ जाती है तो फ़िर किसी भी संयक्त प्रयास की गुंजाईश कम रहती है किंतु समय और पैसे की बचत के दृष्टिकोण से आपसी सहमती से तलाक अर्जी के माध्यम से ही तलाक लेना जरूरी रहता है। इसके लिए सबसे पहली जरूरी बात ये की दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष का निवास स्थान वहां होना चाहिए जहाँ अदालत की अधिकारिती होती है। आपसी सहमती तलाक अर्जी के लिए दोनों पक्षों को एक साथ बैठ कर संयुक्त याचिका तैयार करनी चाहिए। इसमें दोनों का सम्पूर्ण विवरण, वैवाहिक जानकारी , यदि बच्चे है तो उनके बाबत सारे बातें, भरण-पोषण की बाबत खर्चे की रकम का ब्योरा, एकमुश्त या किस्तों में आदि सब कुछ सिलसिलेवार ढंग से लिहना होता है। सामान्यतया हिंदू विवाह अधिनियम के धारा १३ (१) (अ) एवं १३ (१) (बी) के तहत दो याचिकाएं दाखिल की जाती हैं किंतु दोनों याचिकाओं के बीच कम से कम छ माह का अन्तर होना आवश्यक है।

क्रमश..........

शनिवार, 18 अक्तूबर 2008

अदालत में गवाही देने से पहले - भाग दो

गवाहे देने के लिए अदालत गवाह को सम्मान या नोटिस भेजती है जिस पर उसका नाम, पता, अदालत का नाम जहाँ उसे उपस्थित होना है आदि सब कुछ लिखा होता है। गवाह को चाहिए की वह उस नोटिस को संभाल कर रखे और गवाही वाले दिन साथ लाये। यदि हो सके तो उसकी एक फोटो कोपी करवा कर घर पर रख ले। यदि १६१ सी आर पी से के तहत बयान जो पुलिस ने पहले दर्ज किए हों , उसकी कोई कोपी है तो उसे पढ़ कर जाएँ अन्यथा गवाही के दिन से पहले अदालत में जाकर अभियोजन पक्ष के वकील यानि सरकारी वकील से प्रार्थना कर वह पूर्व में दिया हुआ बयान पढ़ सकता है। अक्सर गवाही और घटना के समय के बीच इतना लंबा अन्तराल हो जाता है की वह काफी बातें भूल जाता है इसलिए १६१ का बयान उसकी सहायता करता है। हाँ सबसे महत्वपूर्ण बात ये की यदि गवाही का सम्मान प्राप्त होने के बावजूद वह अदालत में उपस्थित होने की स्थिति में नहीं है तो उसे लिखित में ये सूचना अदालत में किसी के द्वारा पहुंचानी होगी अन्यथा उसके ख़िलाफ़ वारण जारी हो जायेंगे।

गवाही वाले दिन समय पर अदालत में उपस्थित होकर सबसे पहले अपनी हाजिरी लगवाएं ताकि अदालत को सूचना हो जाए की आप गवाही देने के लिए अदालत में उपस्थित हैं। अपनी बारी आने पर गवाही दे के लिए आगे आयें। यहाँ ये याद रहे की किस भी कारण से यदि आप उस दिन गवाही देने की स्थिति में नहीं हैं तो अगली तारीख देने की प्रार्थना कर सकते हैं। मगर सिर्फ़ एक या दो बार। पूछे गए प्रश्न को ठीक से समझने के बाद ही उत्तर दें। सिर्फ़ उतना ही बताएं जितना आवश्यक हो। यदि प्रश्न समझ में नहीं आ रहा है तो आप सरकारी वकील या स्वाम न्यायाधीश से समझाने का आग्रह कर सकते हैं। गवाही के उपरांत उसकी एक कोपी लेने की प्रार्थना भी आप कर सकते हैं, और अदालत निःशुल्क उपलब्ध करायेगी। यदि गवाही पूरी नहीं हुई है और अगली तारीख मिल गयी है तो उसे अच्छी तरह नोट कर लें। गवाही के उपरांत उसके नीचे अपने हस्त्याख्सर करना ना भूलें। गवाही ख़त्म होने के उपरांत अपना दैनिक निर्वाह खर्चा लेना न भूलें। आप जितनी बार भी अदालत में आए हैं आऔर अदालत ने आपको गवाही के लिए बुलाया है सरकार की तरफ़ से आपको निर्वाह बता दिया जायेगा। यदि ट्रेन, बस, आदि से आए हैं तो उसका टिकट संभालकर रखें। दीवानी मुकदमों में गवाह को खर्चा भी वही पक्ष देता है जिसकी तरफ़ से वह गवाही देने आया है।

अक्सर लोगों को ये जानकारी नहीं होती है की ऐसा कोई खर्चा दिया जाता है। इसलिए उन लोगों को ये बहुत अखरता है जिन्हें गवाही के लिए बार बार अदालत में आना पड़ता है। गवाही देने के बाद अपने दिए गए बयानों के नीचे हस्ताक्षर करना आवश्यक होता है। यदि भूलवश ये रह गया है तो आपको दोबारा बुलाया जा सकता है।
इन सारी बातों को ध्यान में रख कर यदि आप गवाही देने के लिए मानसिक रूओप से तैयार हो जाते हैं तो ये निसंदेह आपके लिए भी फायदेमंद होगा और अदालत के लिए भी। यदि इससे सम्बंधित कोई भी प्रश्न आपके मन में हो तो पूछ सकते हैं।

मेरे अगले अंकों में पढ़ें :- तलाक प्रक्रिया, मोटर वाहन दुर्घटना क्लेम, सूचना का अधिकार, पली बारगेनिंग, लोक अदालत आदि.

मंगलवार, 8 जुलाई 2008

अदालत में गवाही देने से पहले (भाग -१)


आज का सामाजिक परिवेश, आसपास का माहौल, घटते हादसे, और बढ़ते अपराध ने स्थिति ऐसी कर दी है की किसी न किसी वजह से सबको अदालत के दरवाजे तक पहुंचना ही पड़ता है। कोई किसी की अदावत के कारण ख़ुद पहुंचता है तो कोई मजबूरी में सामने वाले का जवाब देने पहुंचता है। कोई किसी की तरफ़ से गवाही देने जा रहा है तो कोई किस की जमानत देने।

आज के अंक में हम जिक्र कर रहे हैं की किसी को गवाही देते समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। संक्षेप में ये बताते चले की गवाह अभियोजन पक्ष या वादी की तरफ़ से आरोपी या परतिवादी के ख़िलाफ़ बयान देने की सहमती देता है वह गवाह होता है और उसकोगवाही ही पूरे मुकदमें का आधार बनती है। दीवानी मुकदमों में दोनों पक्षकारों के अलावा वे जिसका नाम व सूची अदालत में पेश करें वही गवाह के रूप में अदालत में बुलाया जाता है। अब उन बातों को जानें जो गवाह के लिए महत्वपूरण हैं।

किसी भी हादसे , दुर्घता, झगडे, वारदात आदि के समय पुलिस kaaryawaahee की जाती है तो अपनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस का पहला काम होता है गवाहों को ढूँढना और धारा १६१ सी आर पी सी के तहत बयान दर्ज करना।घटना, दुर्घटना, के आसपास पुलिस घर के व्यक्ति, पड़ोसी , पास बैठे दूकानदार अथवा सड़क पर चल रहे व्यक्ति को भी गवाह बना सकती है। बशर्ते उसका उस घटना या वारदात से कोई सम्बन्ध हो। यहाँ गवाही देने वाले व्यक्ति को ये ध्यान रखना चाइये की वह पुली को दिए गए बयान की एके प्रति उस अधिकारी से लेकर अपने पास रख ले, ये उसका हक़ है। अदालत में गवाही देते समय ये उसके लिए सहायक साबित होगी। बलात्कार के मुकदमों में पीडिता का बयान यदि दंडाधिकारी के समक्ष हुआ है तो वह इतना महत्त्वपूर्ण है की कालांतर में उस बयान से मुकरने पर सजा तक हो सकती है।


क्रमशः ......

बुधवार, 18 जून 2008

जमानत प्रक्रिया को जानें - 3

जैसा की मैंने कल कहा था की यदि किसी प्रार्थी को लगता है की अदालत ने जमानत के लिए जो राशिः तय की है , वो उसके बूते की बाहर है तो सी आर पी सी की धारा ४४० के तहत वो अदालत में उस जमानत राशिः को कम करने की प्रार्थना कर सकता है। किसी परिस्थितिवश यदि वह जमानती बदलना चाहता है तो इसके लिए भी वह प्रार्थना पत्र दे सकता है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है की जमानत की किसी भी शर्त का उल्लंघन, गवाहों या साक्ष्यों को प्रभावित करने का प्रयास तथा नियत तिथि पर अदालत के समक्ष उपस्थित न होने पर किस भी समय उसकी जमानत रद्द की जा सकती है। कुछ विशेष परिस्थिति में प्रार्थी के अत्यधिक गरीब होने आदि की स्थिति में अदालत उसे व्यक्तिक जमानत पर भी छोड़ सकती है।

जमानत देने वाले व्यक्ति के लिए ध्यान रखने योग्य बातों का उल्लेख भी करते चलें। वह अच्छी तरह तय कर ले की वह किसी की जमानत देने जा रहा है भ्वावेश में या अनजाने में ऐसा करना अहितकर हो सकता है। अपनी पहचान तथा स्तिथि के सन्दर्भ में सभी कागजातों की मूल प्रति अवश्य साथ ले जाएँ। और हां, जमा किए जा रहे सभी कागजातों की एक फोटो प्रति अपने पास सुरक्षित रख लें। वाद संख्या, प्राथमिकी संख्या, थाना धारा, तहत जमानत की तारीख आदि भी अच्छी तरह नोट कर लें। केस की समाप्ति पर पुनः अर्जी लगाकर जमानत बंधपत्र के साथ जमा अपने कागजातों को वापस प्राप्त कर लें।

अगले आलेखों में, तलाक लेने से पहले
कैसे लें मुआवजा,
जाने गिरफ्तारी कानूनको

मंगलवार, 17 जून 2008

कोर्ट में जमानत प्रक्रिया को जाने - 2

गंभीर अपराधों के लिए जमानत की अर्जी अदालत में ही देनी होती है। हत्या, dakaitee,बलात्कार, अपहरण,आदि जैसे गंभीर अपराधों के लिए। उच्च न्यायाय्लय द्वारा जमानत के आदेश तथा सत्र न्यायाय्लय द्वारा अग्रिम जमानत अर्जी पर दिया गया आदेश संबंधित न्यायालयों तथा थानों में , प्रतिलिपि के रूप में भेजा जाता है। हालांकि जमानत के लिए कोई स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं है। ये अपराध की प्रवृत्ति , प्रार्थी की स्तिथि तथा जमानत के लिए उसका आधार पर निर्भर करता है। किंतु सभी अध्नास्थ न्यायालय , समय समय पर उच्च न्यायाय्लय द्वारा जारी दिशा निर्देह्सों को अनुकरणीय रूप में लेते हैं। जमानत आदेश के अनुसार , एक या दों व्यक्तियों को जमानती के रूप में प्रस्तुत करना होता है। जमानती के रूप में परिवार, पड़ोस समाज, रिश्तेदारी आदि में से कोई भी व्यक्ति प्रस्तुत हो सकता है। जमानत हेतु प्रस्तुत किए जाने वाले बंद पत्र यानि बेल बोंड में जमानती का विस्तृत वर्णन दिया जाना अनिवार्य होता है। स्मरण रहे की इन दिनों जमानती की पासपोर्ट फोटो को बेल बोंड पर चिपकाना भी अनिवार्य कर दिया गया है।

जमानत राशी के बारे में , अपनी उस वस्तु या कोई कागजातों के बारे में , जिसे की जमानत के तौर पर प्रस्तुत किया जाना है, उसकी फोटो प्रति भी बेल बोंड के साथ लगानी होती है। न्यायादीश के पूछने पर सब कुछ सही सही बताना आवश्यक है, उसके बाद भी अदालत चाहे तो, अपनी तसल्ली के लिए पुलिस वेरेफीकैसन करवा सकती है, यदि अदालत ऐसा आदेश करती है तो जमानाते को इस बात के लिए तैयार हो जाना चाहिए की कुछ पुलिस वाले उसके घर और पड़ोस में आकर उसके बारे में पूरी पूछताछ कर सकते हैं। इस वेरेफिकासन रिपोर्ट के सही पाए जाने पर उस व्यक्ति को जमानती के रूप में अदालत स्वीकार कर लेती है।

जमानत के सन्दर्भ में कुछ विस्शेष बातों का उल्लेख आवश्यक हो जाता है। यदि प्रार्थी को जमानत राशी ज्यादा लगती है , इतनी की वह जमानती प्रस्तुत नहीं कर सकता तो वह जमानत राशी कम किए जाने की prarthnaa कर सकता है।
kramash :

बुधवार, 30 अप्रैल 2008

जमानत प्रक्रिया को जाने

पुलिस , क़ानून, कचहरी, के सन्दर्भ में जो शब्द सबसे ज्यादा चर्चा के दायरे में रहता है वो है जमानत। दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों के विभिन्न चरणों में कभी किसी को ख़ुद की जमानत लेनी होती है तो कभी किसी का जमानती बनना पड़ता है। जमानत वो ढाल है जो किसी को सजा मिलने तक या कहें की अपराध का दोषी करार दिए जाने तक जेल की काल-कोठारी में जाने से बचाता है। जमानत की पूरी प्रक्रिया को जानने समझने से पहले जानते हैं की आख़िर जमानत होती क्या है , एवं ये कितने प्रकार की होती है आदि आदि।

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा ४३६ से शुरू होकर कई धाराओं में पूरी जमानत प्रक्रिया, जमानत के आदेश का स्वारूप, जमानती के लिए शर्तें आदि का वर्णन है, हालांकि आम लोगों की समझ और जानकारी में जमानत मुख्यतया दो प्रकार की होती है। एक पुलिस बेल और दूसरी कोर्ट बेल, जिसमें अग्रिम जमानत यानि जिसे anticipatory बेल कहते हैं या फ़िर स्थाई जमानत। सीधे सरल शब्दों में कहा जाए तो छोटे-मोटे या कम गंभी अपराध में जब पुलिस को ये विश्वास हो जाता है की वांछित व्यक्ति समय पड़ने पर और बुलाये जाने पर उपस्थित हो जायेगा तो वह एक छोटी राशी के बंधपत्र पर उसकी जमानत ले लेता है। इसके लिए व्यक्तिक जमानत यानि स्वयं की जमानत या फ़िर किसी पड़ोसी, रिश्तेदार या जाने वाले की जमानत दी जा सकती है।

क्रमशः ..............

गुरुवार, 13 मार्च 2008

कैसे चुने अपना वकील (कल से आगे )

जैसा की कल मैंने आप से कहा था की पहली दो बातें जो किसी को भी ध्यान में रखनी चाहिए वो ये की छोटे मोटे काम के लिए उसी के अनुरूप वकील और दूसरा ये की जो वकील जिस क्षेत्र में माहिर हो उसे उसी क्षेत्र के काम के लिए लिया जाया तो परिणाम निसंदेह बेहतर होता है , और ये फर्क मुक़दमे की पेशी के दौरान ही हो जाता है, आज बात करते हैं , वकीलों के फीस की और कुछ और भी बातें जो किसी को भी वकील करते समय ध्यान में रखनी चाहिए।

कहते है की डॉक्टर , मकेनिक, और वकील की फीस अनिश्चित और आस्मां होती है। सच तो ये है की इन सबका काम ही इनकी फीस तय करता है। लेकिन वकालत के पेशे में इन दिनों फीस लें की तीन तरह की प्रवृत्ति प्रचलित है। पहली लम्षम में, यानि पूरे काम के या मुक़दमे की फीस एक साथ, एक निश्चित रकम के रूप में। दूसरी मुक़दमे की तारीख के हिसाब से यानि जितने दिन वकील आपके मुक़दमे में पेश होगा उन दिनों के पैसे आपसे लेगा, तीसरा और अन्तिम होता है कमीसन के रूप में , और ये तीसरी तरह की फीस सिर्फ़ मुआवजे या फ़िर अनुदान भत्ते आदि के मुक़दमे में ही ली जाती है, यानि की जितनी रकम मुक़दमे की जीत के बाद मिलेगी उसका कुछ प्रतिशत वकील अपनी फीस के रूप में लेगा। सबसे जरूरी बात ये होती है की फीस की बात बिल्कुल स्पष्ट कर लेनी चाहिए और एक बार बात तय हो जाने के बाद आनाकानी से आप ख़ुद मुसीबत में पड़ सकते हैं।

यहाँ ये बता दूँ की गरीबों और लाचार लोगों के लिए अदालत और सरका की तरफ़ से निशुल्क वकील की भी व्यवस्था होती है, इसके लिए सभी अदालात में मौजूद विधिक सेवा सहायता केन्द्र के दफ्तर में अर्जी देकर वकील प्राप्त किया जा सकता है।

यदि किस कारंवाश वकील बदलना पड़ जाया तो नए वकील से पुराने वकील की बुराई कभी ना करें , क्योंकि आप नहीं जानते की कौन सा वकील किस वकील का मित्र कौन उसके ख़िलाफ़।

यदि किसी वकील के काम से आप खुश नहीं हैं या फ़िर आपको उससे कोई गंभीर शिकायत है तो सभी अदालतों में बने बार असोसिएशन के दफ्तर में जाकर वहाँ के पदाधिकारियों से अपनी बात कह सकते हैं।

एक सबसे जरूरी बात वकील कोई भी अच्छा या ख़राब नहीं होता और हरेक वकील सिर्फ़ जीतने के लिए लड़ता है , फर्क होता है तो सिर्फ़ ज्ञान और कुव्वत का ।

यदि आप में से कोई भी कोई प्रश्न करना चाहे तो भी मुझे लिख सकते हैं मैं अपने ज्ञान के अनुरूप शंका समाधान की कोशिश करूंगा।

आज इतना ही....

बुधवार, 12 मार्च 2008

कैसे चुने अपना वकील ?

आज एक छोटी सी जानकारी आपसे बाँट रहा हूँ। कभी भी कोई आम आदमी जब भी किसी तरह के कानूनी पचड़े में पड़ता है तो जो पहली बात उसके जेहन में आती है वो होती है कि, कोई जानकार व्यक्ति को सम्पर्क किया जाए जो की इस झंझट से मुक्ति दिलवाए ऐसे में उसके दिमाग में सिर्फ़ एक ही व्यक्ति का ध्यान आता है वो है वकील । हालांकि वकीलों के बारे में कुछ भी कहना या बताना बिल्कुल उसी तरह से है जैसे की किसी क्रिकेट मैच के परिणाम के बारे में कोई घोषणा करना। लेकिन यदि कुछ मोटी मोटी बातें याद राखी जाएँ तो इतना तो जरूर हो सकता है की उसे बाद में जाकर ये अफ़सोस नहीं होगा की यदि इस तरह का वकील किया होता , या की अमुक आदमी को वकील के रूप में रखा होता तो शायद मुक़दमे का फैसला कुछ अलग होता॥

अदालत में जाने से पहले आपको ये तय करना है की आपका काम किस तरह का है और उसी के अनुरूप वकील भी आपको करना चाहिए । मसलन उदाहरण दे कर मैं समझाता हूँ, यदि किसी को सिर्फ़ चल्लान का, उसे भुगतने का, या फ़िर जमानत की अर्जी का, या फ़िर गवाही के लिए, अपनी वसीयत के लिए , या इसे तरह के और दूसरे कामों के लिए अदालत में जाना पड़ रहा है तो अच्छा होता है की उन वकीलों से सम्पर्क किया जाए जो इसे तरह के छोटे काम को अपने हाथों में लेते हैं। इसका पहला लाभ तो ये होगा की आप को बहुत ज्यादा पैसे खर्च नहीं करने पड़ेंगे कम से कम उस तुलना में तो कम ही जो की कोई भी बड़ा वकील उसी काम के लिए लेगा। दूसरा ये की उसके पास आपके लिए समय का अभाव नहीं होगा।

यदि आपको पूरे मुक़दमे के लिए , उसकी एक एक कार्यवाही के लिए किसी वकील की जरूरत है तो फ़िर किसी भी तरह से अच्छा वकील ही करने की कोशिश करें। इसमें ध्यान रखने की बात सिर्फ़ ये है की सभी वकीलों का अपना अपना कार्यक्षेत्र होता है अपनी अपनी खासियत होती है कोई दीवानी मुक़दमे का स्पेसिअलिस्ट होता है तो कोई फौजदारी मुक़दमे का , कोई मुआवजे की मुकदमों का, तो अच्छा ये होता है की यदि किसी वकील के अनुरूप ही उसे कार्य दिया जाए तो उसका परिणाम अपेक्षित है की जयादा बेहतर आए।

क्रमशः ..........

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

कोर्ट कचहरी की कुछ और बातें.

इस ब्लॉग की पहली पोस्ट में मैंने आपको बताया था की मैं इस ब्लॉग पर क्या सब करने और लिखने वाला हूँ। आज उसी बात को जारी रखते हुए आगे बता रहा हूँ। एक आम आदमी को अदालत , कोर्ट कचहरी थाना, पुलिस आदि सभी कुछ खामखा के झंझट लगते हैं , सच पूछिए तो होते भी यही हैं । मगर दूसरी तरफ़ ये भी एक कटु सत्य है की चाहे अनचाहे आज अदालत उसकी खबरें , कानूनी जानकारी भी एक आदमी की जरूरत बन चुकी है। चाहे अपनी वसीयत बनवाने हो या अफ्फिदावित या कहें की शपथ पत्र, या फिर कोई और काम मगर कभी ना कभी सबको इनकी जरूरत पड़ रही है।

एक और बात जो मैंने महसूस की है वो ये की ग्रामीण क्षेत्रों में तो अभी भी अदालती चक्कर का खेल उतना प्रचलित नहीं हुआ है मगर शहरी और विशेषकर महानगरों में तो ये एक अति आवश्यक काम हो गया है। मैं इस ब्लॉग पर सिलसिले से पहले विभिन्न अदालतों से उनके कार्य , उनके कार्यक्षेत्र के अनुरूप आपका परिचय कराऊंगा। इसके बाद अलग अलग भागों में जरूरी "कानूनी जानकारी " देने की कोशिश करूंगा, इसके साथ साथ आपके प्रश्नों , आपकी दुविधाओं का जवाब देने की कोशिश भी रहेगी, और हाँ निसंदेह अदालतों में फैले भ्रष्टाचार और रोचक घटनाओं का जिक्र भी करूंगा।

उम्मीद है की आपको मेरा ये प्रयास भी सार्थक और आपके लिए उपयोगी लगेगा.

बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

इस ब्लॉग का परिचय

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

जैसा की पिछले वर्ष के अंत में आप सबसे वादा किया था की भविष्य में आप लोगों के लिए दो नए ब्लॉग लेकर उपस्थित हूउँगा, जिसमें से पहला होगा कोर्ट-कचहरी और दूसरा एक उपन्यास "मंदाकिनी " । अपने वादे के अनुरूप ही आपके सामने पहला और मेरा चौथा ब्लॉग लेकर हाजिर हूँ।

कचहरी या अदालत बहुत पहले से एक ऐसी जगह रही है जहाँ के बारे में बहुत सारी बातें कही और सूनी जाती रही हैं। कोई इसे न्याय का मन्दिर कहता है , कोई इसे लोकतंत्र का प्रहरी कहता है । कुछ लोग कहते हैं की भगवान् दुश्मन को भी अदालत के चौखट पर ना ले जाए। कहने का मतलब की जितने लोग उतने ही अलग अलग अनुभव और उनके विचार। ब्लॉग जगत पर पहले से ही कुछ ब्लोग्स अदालत या इससे संबंधित विषयों पर चल रहे हैं । मगर मैं उनसे अलग आपसे बहुत सी बातें करने सुनने वाला हूँ । पिछले दस वर्षों में अपने कार्य के दौरान मेरे अनुभव , मेरी जानकारी, मेरा ज्ञान और मेरी सहायता जो भी जितना भी मेरे पास है वो मैं आपसे बांटने वाला हूँ। मसलन एक आदमी के लिए अदालत कोर्ट कचहरी का मतलब , उसकी दिक्कत, उसके अनुभव , उसके सवाल और उनका जवाब ॥

यदि थोडा संछेप में बताऊँ टू ये कुछ ऐसा होगा, की एक आम आदमी को अपना वकील चुनने से पहला किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, गवाही देते समय क्या कैसे होना चाहिए, विवाह और तलाक, गुजारा बता, जमानत , क्लेम आदि सब कुछ धीरे धीरे आपके सामने लाने की कोशिश रहेगी, इसके साथ साथ अदालातों में घटने वाली दिलचस्प घटनाएं, फैसले , और भी बहुत कुछ।

अंत में सिर्फ़ इतना ही की मेरे अन्य ब्लोग्स की तरह आप जब इसे भी पढेंगे टू मुझे यकीन है की आपको ऐसा नहीं लगेगा की समय नष्ट हुआ.