रविवार, 12 अप्रैल 2009

न्यायाधीशों के लिए बन रहा है तनावमुक्ति कक्ष और एक संयुक्त भोजन कक्ष

जैसा की मैं अपनी पिछली पोस्टों में बताता रहा हूँ की इन दिनों राजधानी की जिला अदालतों में बुनियादी सुधार कार्यक्रम और कई सारी योजनायें चल रही हैं जिनमें से कई सारी योजनाओं का जिक्र मैं पहले ही कर चुका हूँ, आज बात न्यायाधीशों के लिए बन रहे तनावमुक्ति कक्ष और संयुक भोजन कक्ष की.

सूत्रों की मने तो राजधानी की सभी पाँचों अदालतों में तनावमुक्ति कक्ष का न्रिमान कार्य शुरू हो चुका है (डिस्ट्रेस रूम) . सभी अदालतों में इसके लिए कक्षों की पहचान कर ली गयी है तथा उसे तैयार करने का काम भी शुरू होने जा रहा है. दरअसल ये तो सभी जानते हैं की अदालतों में मुकदमों का बेतहाशा बोझ है और काफी प्रयासों के बावजूद वो बढ़ता ही जा रहा है. इसका परिणाम ये निकल रहा है की आज हर न्यायाधीश को अपने निर्धारित कार्य से कहीं अधिक काम करना पड़ रहा है और उसकी वजह से उन्हें शारीरिक और मास्न्सिक थकान की परिस्थितियों से गुजरना पड़ रहा है. पिछले वर्षों में इसी तरह के तनाव को झेलते हुए एक न्यायाधीश अपने कार्य के दौरान ही अदालत में बेहोश होकर गिर पड़े थे. इसके बाद अदालत प्रशाशन की तरफ़ से कई बार तनावमुक्ति हेतु शाम को कई कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें ध्यान और योग शामिल था. इन कार्यक्रमों का सकारात्मक स्वागत किया गया. इसी के बाद ये योजना बने की यदि अदालतों में एक स्थायी तनावमुक्ति कक्ष बना दिया जाए तो ये और भी कारगर साबित होगा, जिसे अब अमली जमा पहना जाया रहा. हालाँकि अभी ये तय नहीं हुआ है की वहां क्या क्या और कैसी व्यवस्ता होगी किंतु सुना गया है की आध्यात्मिक संगीत , योग , ध्यान आदि की व्यवस्था की जायेगी.

न्यायाधीशों के लिए जो दूसरी योगना बन रही है व्हो हैं एक संयुक्त भोजन कक्ष का निर्माण. दरअसल इसके पीछे की कहानी यह है की न्यायाधीशों को आपस में एक दूसरे से मुलाकात और बातचीत का मौका लगभग न के बराबर मिलता हैं. अक्सर वे या तो किसी सेमिनार या किसी कार्यशाला के दौरान हे मिल पते हैं जहाँ स्वाभाविक रूप से या तो उन निर्धारित विषयों से सम्भंदित या सिर्फ़ औपचारिक बातें भर हो पाती हैं इसलिए एक ऐसे मुके और बहने की आवश्यकता थी जहाँ सभी न्यायाधीश मिल बैठ कर खुले दिल से बातचीत कर सकें. यही सोच कर सभी जिला न्यायालयों में संयुक्त भोजन कक्ष बनाया जा रहा हैं, जहाँ एक साथ कम से कम पचास न्यायाधेश भोजन कर सकते हैं.

ज्ञात हो की ये सभी नए सुधार पश्चिमी देशों की न्यायिक प्रक्रियाओं से प्रेरित होकर किए जा रहे हैं, हाँ अब देखना ये होगा की ये सुधार भारतीय न्यायिक प्रक्रिया के बोझ को कितना कम कर पाते हैं?