मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

मोटर वाहन दुर्घटना पंचाट की कुछ दुविधाएं








आजकल मेरी नियुक्ति मोटर वाहन दुर्घटना न्यायाधिकरण में ही और पिछले एक वर्ष से इसकी सभी कार्यवाहियों, नए प्रावधानों , पुलिस , बीमा कंपनियों के क्रियाकलाप और उनके रवैये को बहुत ही बारीकी से देख भी रहा हूं और परख भी रहा हूं । एक अधिकारी के रूप में मैंने अब तक कुछ खास बातें समझी परखी हैं जो आम लोगों के सामने आनी चाहिए । राजधानी दिल्ली जैसे महानगरों में बहुत सारी चुस्त व्यवस्थाओं और ट्रैफ़िक नियमों के बावजूद तेज़ी से मोटर दुर्घटनाएं बढती जा रही हैं । विशेषकर दिल्ली में ब्लू लाईन जैसी निजि बस सेवाओं पर पाबंदी , पुराने हो चुके वाहनों के परिचालन पर पाबंदी और मेट्रो सेवा जैसी अत्याधुनिक यातायात व्यवस्था के बावजूद अगर हालात दिनों दिन बदतर होते जा रहे हैं तो नि:संदेह कहीं न कहीं अभी भी सब कुछ दुरूस्त नहीं है । आईसे सबसे पहले देखते हैं कि वो कौन सी चुनौतियां या समस्याएं हैं जो आज एक मोटर वाहन न्यायाधिकरण के सामने आ रही हैं ।



स्कूटी बनी नई मुसीबत :- हल्के दुपहिया वाहन और उनके चालक , मोटर वाहन दुर्घटना की चपेट सबसे ज्यादा आते हैं और आंकडों के अनुसार घायल एवं मृत लोगों में इनकी ही गिनती सबसे ज्यादा होती है । इसमें हैरान कर देने वाली बात ये है कि भारी दुपहिया बाईक से लेकर हल्के स्कूटर तक सब इसका शिकार होते रहे हैं , लेकिन अब एक नई मुसीबत के रूप में आई है स्कूटी । जी हां पिछले कुछ समय में ही बाज़ार में आई और तेजी से युवाओं और विशेषकर युवतियों में लोकप्रिय हुई स्कूटियों ने स्थिति को और भी नारकीय बना दिया है । बैटरी से चालित इन स्कूटियों का न तो कोई पंजीकरण होता है , न ही इसके लिए लाईसेंस की जरूरत होती है और न ही हेलमेट की अनिवार्यता , क्योंकि इन्हें सीमित यातायात के लिए और आसपास आने जाने की उद्देश्य से बनाया गया है । लेकिन जिस तेजी से इनसे होने और करने वाली दुर्घटनाओं के मामले सामने आ रहे हैं उससे साफ़ पता चल रहा है कि न सिर्फ़ युवा युवतियां , बल्कि स्कूली बच्चे तक आसपास की गलियों से लेकर मुख्य सडको तक पर इन्हें तेज़ गति से न सिर्फ़ दौडा रहे हैं बल्कि सामने पड रहे बच्चे , बुजुर्ग और अन्य राहगीरों को तक को अपनी चपेट में ले रहे हैं । मोटर वाहन अधिनियम के किसी भी दायरे में न आने के कारण मुआवजा कंपनियां इन दुर्घटनाओं में मुआवजा नहीं देती हैं मजबूरन आपसी समझौते में पीडित जो कि पहले ही मानसिक और शारीरिक कष्ट झेल रहा होता है उसे आर्थिक नुकसान भी उठाना पडता है ।





सरकारी वाहनों को अनिवार्य बीमे की शर्त से मिली छूट : - ये बहुत ही हैरत की बात है कि एक आम आदमी द्वारा किसी भी वाहन को बिना बीमा कराए सडक पर चलाना अपराध घोषित करने वाली सरकार और प्रशासन ने अपने लिए और अपनी तमाम संस्थाओं निकायों द्वारा चालित तमाम सरकारी वाहनों और यहां तक राज्य सरकार की परिवहन व्यवस्था के अधीन चलने वाली बसों तक को बीमाकरण से छूट दे कर रखा गया है । अब इसके पीछे का तर्क भी सुन लीजीए । सरकार का कहना है कि दुर्घटना से उत्पन्न सभी मुआवजों को वो भुगतान राजकोष से कर देंगे । और इस कारण से वे प्रति वर्ष बीमा न करवाकर लाखों करोडों रुपए बचा लेती हैं । लेकिन सिर्फ़ रिकॉर्ड ही इस बात को आसानी से साबित कर देते है कि असलियत में जब मुआवजा देने की बारी आती है तो वे न सिर्फ़ आनाकानी करते हैं बल्कि मुआवजे की राशि का भुगतान करने में भी सालों लगाते हैं । एक और दिलचस्प बात ये कि चूंकि इनका खुद का बीमा नहीं होता इसलिए जब किसी अन्य वाहन से इनकी गाडी दुर्घटनाग्रस्त होती है तो सारा भार दूसरे पक्ष के ऊपर ही आता है । दिल्ली में पीसीआर की गाडियों से टकराने वाले स्कूटर सवारों तक को मुआवजे की राशि का भुगतान करने के लिए अपना घर बार तक बेचना पड जाता है ।





बीमा कंपनियों का बेहद असंवेदनशील रवैया : - पिछले दिनों अदालती दखल के बाद बीमा कंपनियों के प्रति सख्त रुख अपनाने के कारण जरूर बीमा कंपनियों पर थोडा शिकंजा कसा गया है लेकिन इसके बावजूद भी दुर्घटना मुआवजा देने के प्रति बीमा कंपनियों का रवैया बेहद असंवेदनशील और गैर जिम्मेदाराना रहता है । आज भी अदालत के सख्त निर्देशों के बावजूद ( हाल ही में एक याचिका का निपटारा करते हुए माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने बीस बीमा कंपनियों को ये आदेश दिए थे कि उनके एक प्रतिनिधि नोडल ऑफ़िसर हर न्यायाधिकरण में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहें ) अब भी उनका टालमटोल वाला रवैया ही रहता है । विशेष कर बडी बीमा कंपनियां जैसे , ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी , न्यू इंडिया एश्योरेंस , युनाईटेड इंश्योरेंस , नेशनल इंश्योरेंस आदि का रवैया सबसे ज्यादा खराब रहता है ।





अगले भाग में जानेंगे कि एक आम आदमी , चाहे वो पीडित पक्ष से हो या प्रतिवादी पक्ष से उसे दुर्घटना मुआवजे के वाद में क्या करना चाहिए ???