मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

नहीं कम होगी मुकदमों के निस्तारण की रफ़्तार




देश के अन्य सरकारी संस्थानों की तरह ही देश की सारी विधिक संस्थाएं ,अदालत , अधिकरण आदि भी इस वक्त थम सी गई हैं।  हालाँकि सभी अदालतों में अत्यंत जरूरी मामलों की सुनवाई के लिए बहुत से वैकल्पिक उपाय किये गए और वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये उनमें सुनवाई करके आदेश जारी भी किये जा रहे हैं।  ऐसे ही बहुत सारे आदेश कोरोना टेस्ट किट और उनके मूल्य के निर्धारण आदि मामलों में दिए भी गए हैं।  

किन्तु आम जन और विशेषकर अदालतों में अपने लंबित मुकदमों मामलों के सभी पक्षकार इस बात से जरूर चिंतित और जिज्ञासु होंगे कि ऐसे में जब पूरे लगभग दो माह का समय ऐसा निकल गया है जब उनके मामलों की सुनवाई नहीं हुई तो इससे उनके मामलों पर क्या और कितना असर पडेगा।  

पहले बात करते हैं उन मामलों की जो अदालतों में लंबित थे और जिन पर सुनवाई जारी थी तो सभी अदालतों ने तदर्थ और अंतरिम व्यवस्था देते हुए सभी लंबित मामलों को एक चरणबद्ध  व नियोजित तरीके से इस प्रकार स्थगन दिया है कि सभी मुकदमों को सिर्फ और सिर्फ एक तारीख के लिए टाला गया है ठीक उस स्थिति जैसे जब अदालत के पीठासीन अधिकारी अवकाश पर होते हैं या फिर अदालतों में मुक़दमे का स्थानांतरण होने में जो समय लगता है।  

अदालत के खुलते ही पहले से लंबित मुकदमों के साथ साथ इन सभी स्थगित मुकदमों की सुनवाई भी तीव्र गति से की जाएगी।  अभी से ही न्याय प्रशासन ने न सिर्फ वर्ष 2020 के लिए निर्धारित ग्रीष्म व शीत ऋतु के अवकाशों को रद्द करने का इशारा दे दिया है बल्कि सांध्य कालीन अदालत लोक अदालत और विशेष अदालतों की विशेष व्यवस्था से जल्दी से जल्दी सबकुछ पटरी पर लाने की तैयारी कर ली है।  

इन सबके अतिरिक्त विशेष महत्व के बहुत जरूरी मुकदमों और मामलों को सम्बंधित पक्षकारों द्वारा दिए गए प्रार्थनापत्र के आधार पर सुनवाई में प्राथमिकता देने की भी व्यवस्था रहेगी ही।  

ध्यान रहे कि देशबन्दी से रोजाना घटित हो रहे लाखों अपराध अपने आप ही रुक से गए हैं , या कहें कि अपराधियों को अपराध कारित करने का अवसर ही नहीं मिल पा रहा रहे और ये इस लिहाज़ से भी ठीक है कि जो पुलिस अभी कोरोना काल में देशबन्दी को सफल बनाने में अपना जी जान समर्पित किये हुए है उसे कम से कम इस मोर्चे पर अपना ध्यान देने की जरूरत नहीं पड़ रही है।  हालांकि छिटपुट घटनाओं के कारण पुलिस को अपराधों की तरफ से पूरी तरह मुक्ति तो नहीं ही मिली है।  

जैसी  कि समाचार मिल रहे हैं इस समय में घरेलु हिंसा के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है जो कि इसलिए भी स्वाभाविक सी लगती है कि शराब ,सिगरेट ,गुटखे आदि के व्यसन से बुरी तरह लिप्त समाज इस समय आने वाले भविष्य में अपने रोजगार व्यापार के प्रति नकारात्कमक अंदेशे के कारण अधिक हताश व क्रोधित भी होगा।  लेकिन ये मामले किसी भी तरह से अदालत के मुकदमे निस्तारण की रफ़्तार को धीमा नहीं करेंगे।  

जहां तक मेरा आकलन है देशबन्दी खुलने के एक माह के भीतर ही देश की सभी अदालतें अपनी पुरानी व्यवस्था और पुराने रफ़्तार में ही आ जाएंगी।  अभी तो यही आशा की जा सकती है।  

18 टिप्‍पणियां:

  1. सब योजनाबद्ध तरीक़े से चले तो उम्मीद तो की ही जा सकती है की देश जल्द पटरी पर लोटेगा

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    1. जी दादा इसके अतिरिक्त अभी और कुछ किया भी तो नहीं जा सकता। उम्मीद का दामन ही थामे रहना होगा

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  2. न केवल अदालतें वापस आयें अपनी पुरानी रफ़्तार पर बल्कि सभी संस्थान भी ऐसा कर पायें.. यही कामना है.

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    1. सबको अपनी रफ़्तार पकड़ने में थोड़ा समय तो लगेगा ही ,अदालतों को भी

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    1. बिना तारीख मिले मुकदमों का फैसला नहीं होता सुनील जी

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    2. अजय कुमार जी सहमत नहीं एक छोटा सा थप्पड़ चट्टू का केस 10 साल लगेंगे फैसला देने में

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    1. जी देखता हूँ खुश्बू जी किन्तु टिप्पणी सिर्फ अपने पोस्ट की लिंक देने के लिए किया जाना मुझे उचित नहीं लगता | अच्छा होता यदि आप पोस्ट पर भी कोई प्रतिक्रया देतीं |

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  5. सारी व्यवसथायें जब लंबित हो गई हैं तो अदालत कैसे पटरी पर आयेगी ।लेकिन किसी मुकद्दमे में जब सामान्य हालातों में 15 से 20 साल लग जाते हैं तो फिर अब तो कारण है ।

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    1. किसी भी मुकदमे में अब 10 15 वर्ष नहीं लगते । और यदि ऐसा होता है तो उसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं ।

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  6. कोरोना को लेकर सरकार जितनी सक्रिय है, आमजन नहीं दिख रहे, इसलिए लड़ाई लम्बी दिखती है !

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    1. हाँ निश्चित रूप से अब ये लड़ाई बहुत लंबी चलने वाली है ।

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  7. अदालत अपने स्तर पर पुरी कोशिश करती है परंतु जनता ये समझती नहीं है

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    1. सच कह रहे हैं आप भरत जी । जनता के सामने अदालतों का कुछ और ही रूप लाया जाता है हमेशा ।

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  8. रोहिणी कोर्ट में मेरा एक केस चल रहा है मेरे एक प्यारे मित्र ने मुझे पैसे लिए बदले में मैंने उसे 50रुपये के एफिडेविट पर लिखवा कर लिया और खाली चेक ले लिया फिर भी मुकदमा 5 साल से ऊपर तारीख पर तारीख तारीख पर तारीख बिल्कुल समझ नहीं आया भाई भारतीय कानून व्यवस्था में मेरी आस्था बिल्कुल खत्म हो गई अजय कुमार जी

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