आजकल मेरी नियुक्ति मोटर वाहन दुर्घटना न्यायाधिकरण में ही और पिछले एक वर्ष से इसकी सभी कार्यवाहियों, नए प्रावधानों , पुलिस , बीमा कंपनियों के क्रियाकलाप और उनके रवैये को बहुत ही बारीकी से देख भी रहा हूं और परख भी रहा हूं । एक अधिकारी के रूप में मैंने अब तक कुछ खास बातें समझी परखी हैं जो आम लोगों के सामने आनी चाहिए । राजधानी दिल्ली जैसे महानगरों में बहुत सारी चुस्त व्यवस्थाओं और ट्रैफ़िक नियमों के बावजूद तेज़ी से मोटर दुर्घटनाएं बढती जा रही हैं । विशेषकर दिल्ली में ब्लू लाईन जैसी निजि बस सेवाओं पर पाबंदी , पुराने हो चुके वाहनों के परिचालन पर पाबंदी और मेट्रो सेवा जैसी अत्याधुनिक यातायात व्यवस्था के बावजूद अगर हालात दिनों दिन बदतर होते जा रहे हैं तो नि:संदेह कहीं न कहीं अभी भी सब कुछ दुरूस्त नहीं है । आईसे सबसे पहले देखते हैं कि वो कौन सी चुनौतियां या समस्याएं हैं जो आज एक मोटर वाहन न्यायाधिकरण के सामने आ रही हैं ।
स्कूटी बनी नई मुसीबत :- हल्के दुपहिया वाहन और उनके चालक , मोटर वाहन दुर्घटना की चपेट सबसे ज्यादा आते हैं और आंकडों के अनुसार घायल एवं मृत लोगों में इनकी ही गिनती सबसे ज्यादा होती है । इसमें हैरान कर देने वाली बात ये है कि भारी दुपहिया बाईक से लेकर हल्के स्कूटर तक सब इसका शिकार होते रहे हैं , लेकिन अब एक नई मुसीबत के रूप में आई है स्कूटी । जी हां पिछले कुछ समय में ही बाज़ार में आई और तेजी से युवाओं और विशेषकर युवतियों में लोकप्रिय हुई स्कूटियों ने स्थिति को और भी नारकीय बना दिया है । बैटरी से चालित इन स्कूटियों का न तो कोई पंजीकरण होता है , न ही इसके लिए लाईसेंस की जरूरत होती है और न ही हेलमेट की अनिवार्यता , क्योंकि इन्हें सीमित यातायात के लिए और आसपास आने जाने की उद्देश्य से बनाया गया है । लेकिन जिस तेजी से इनसे होने और करने वाली दुर्घटनाओं के मामले सामने आ रहे हैं उससे साफ़ पता चल रहा है कि न सिर्फ़ युवा युवतियां , बल्कि स्कूली बच्चे तक आसपास की गलियों से लेकर मुख्य सडको तक पर इन्हें तेज़ गति से न सिर्फ़ दौडा रहे हैं बल्कि सामने पड रहे बच्चे , बुजुर्ग और अन्य राहगीरों को तक को अपनी चपेट में ले रहे हैं । मोटर वाहन अधिनियम के किसी भी दायरे में न आने के कारण मुआवजा कंपनियां इन दुर्घटनाओं में मुआवजा नहीं देती हैं मजबूरन आपसी समझौते में पीडित जो कि पहले ही मानसिक और शारीरिक कष्ट झेल रहा होता है उसे आर्थिक नुकसान भी उठाना पडता है ।
सरकारी वाहनों को अनिवार्य बीमे की शर्त से मिली छूट : - ये बहुत ही हैरत की बात है कि एक आम आदमी द्वारा किसी भी वाहन को बिना बीमा कराए सडक पर चलाना अपराध घोषित करने वाली सरकार और प्रशासन ने अपने लिए और अपनी तमाम संस्थाओं निकायों द्वारा चालित तमाम सरकारी वाहनों और यहां तक राज्य सरकार की परिवहन व्यवस्था के अधीन चलने वाली बसों तक को बीमाकरण से छूट दे कर रखा गया है । अब इसके पीछे का तर्क भी सुन लीजीए । सरकार का कहना है कि दुर्घटना से उत्पन्न सभी मुआवजों को वो भुगतान राजकोष से कर देंगे । और इस कारण से वे प्रति वर्ष बीमा न करवाकर लाखों करोडों रुपए बचा लेती हैं । लेकिन सिर्फ़ रिकॉर्ड ही इस बात को आसानी से साबित कर देते है कि असलियत में जब मुआवजा देने की बारी आती है तो वे न सिर्फ़ आनाकानी करते हैं बल्कि मुआवजे की राशि का भुगतान करने में भी सालों लगाते हैं । एक और दिलचस्प बात ये कि चूंकि इनका खुद का बीमा नहीं होता इसलिए जब किसी अन्य वाहन से इनकी गाडी दुर्घटनाग्रस्त होती है तो सारा भार दूसरे पक्ष के ऊपर ही आता है । दिल्ली में पीसीआर की गाडियों से टकराने वाले स्कूटर सवारों तक को मुआवजे की राशि का भुगतान करने के लिए अपना घर बार तक बेचना पड जाता है ।
बीमा कंपनियों का बेहद असंवेदनशील रवैया : - पिछले दिनों अदालती दखल के बाद बीमा कंपनियों के प्रति सख्त रुख अपनाने के कारण जरूर बीमा कंपनियों पर थोडा शिकंजा कसा गया है लेकिन इसके बावजूद भी दुर्घटना मुआवजा देने के प्रति बीमा कंपनियों का रवैया बेहद असंवेदनशील और गैर जिम्मेदाराना रहता है । आज भी अदालत के सख्त निर्देशों के बावजूद ( हाल ही में एक याचिका का निपटारा करते हुए माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने बीस बीमा कंपनियों को ये आदेश दिए थे कि उनके एक प्रतिनिधि नोडल ऑफ़िसर हर न्यायाधिकरण में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहें ) अब भी उनका टालमटोल वाला रवैया ही रहता है । विशेष कर बडी बीमा कंपनियां जैसे , ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी , न्यू इंडिया एश्योरेंस , युनाईटेड इंश्योरेंस , नेशनल इंश्योरेंस आदि का रवैया सबसे ज्यादा खराब रहता है ।
अगले भाग में जानेंगे कि एक आम आदमी , चाहे वो पीडित पक्ष से हो या प्रतिवादी पक्ष से उसे दुर्घटना मुआवजे के वाद में क्या करना चाहिए ???
बहुत ही अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभाई! सिलसिला इसी तरह जारी रहे।
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएं............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
लिंग से पत्थर उठाने का हठयोग।
देश और समाजहित में देशवासियों/पाठकों/ब्लागरों के नाम संदेश:-
जवाब देंहटाएंमुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन-सा समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है और देश की सेवा से बढ़कर कोई बड़ा धर्म नहीं हैं. क्या हम ब्लोगिंग करने के बहाने द्वेष भावना को नहीं बढ़ा रहे हैं? क्यों नहीं आप सभी व्यक्ति अपने किसी ब्लॉगर मित्र की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और किसी को आपकी कोई जरूरत (किसी मोड़ पर) तो नहीं है? कहाँ गुम या खोती जा रही हैं हमारी नैतिकता?
मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
आपका अपना नाचीज़ दोस्त रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"
अच्छा जागरूक किया आपने।
जवाब देंहटाएंदोस्तों, क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना.........
जवाब देंहटाएंभारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से (http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/04/blog-post_29.html )
श्रीमान जी,मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे.ऐसा मेरा विश्वास है.
जवाब देंहटाएंश्रीमान जी, क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
जवाब देंहटाएंश्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी कल ही लगाये है. इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.