हाल ही में दिल्ली की कुछ अधीनस्थ न्यायालयों में पारिवारिक अदालतों की स्थापना की गई है जो अपने तरह की इस तरह की पहली अदालतें हैं । हालांकि राजधानी की प्रत्येक जिला अदालतों में पहले से ही गुजारा भत्ता, तलाक और गार्जियनशिप अदालतों का गठन किया जा चुका है जो सफ़लतापूर्वक अपना काम कर भी रही हैं । किंतु इन नई तरह की अदालतों का गठन मध्यस्थता के आधार पर और तोडो नहीं जोडो की नीति का पालन करने के लिए किया गया है ।ज्ञात हो महानगरीय जीवन में पारिवारिक रिश्तों में आ रही खटास और शादी जैसी संस्थाओं के लगातार टूटते जाने का दर किस कदर बढ रहा है इस बात का अंदाज़ा सिर्फ़ इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में पारिवारिक मुकदमों से निपटने वाली सिर्फ़ एक अदालत में ही प्रति माह सौ से अधिक तलाक के मुकदमे निपटाए जा रहे हैं । ये आंकडा ही साबित कर रहा है कि शहरी जीवन में परिवार , विवाह जैसी संस्थाओं पर से लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है जिसके बहुत से वाजिब और गैर वाजिब कारण हैं ।पिछले कुछ वर्षों में अदालतों में बढते दबाव को कम करने के लिए , वर्षों से चली आ रही और हमारी ग्राम्य न्याय व्यवस्था की एक प्रमुख प्रणाली मध्यस्थता को भी अपनाने की शुरूआत की गई । सभी जिला अदालतों एवं उच्च न्यायालयों में पहले अस्थाई और फ़िर स्थाई मध्यस्थता केंद्रों की स्थापना की गई । यहां उन मुकदमों को भेजने की प्रक्रिया शुरू की गई जिनमें समझौते की गुंजाईश थी । इस बात का पूरा ध्यान रखते हुए कि दोनों पक्षों को अदालती माहौल से अलग वातावरण लगे इसके विशेष प्रशिक्षण प्राप्त न्यायिक अधिकारियों , अधिवक्ताओं , कानूनविदों की इन मध्यस्थता केंद्रों में नियुक्ति की गई । इसका परिणाम अपेक्षा से कहीं बेहतर निकला । विशेषकर पारिवारिक वादों में तो इसकी सफ़लता देखने लायक थी ।इन्हीं सफ़लताओं को देखते हुए दिल्ली में नई पारिवारिक अदालतों की स्थापना की गई है । इन अदालतों में विशेष रूप से बैठने के लिए आरामदायक कक्षों के अलावा , मनोरंजन के लिए टीवी कंप्यूटर युक्त एक मनोरंजन कक्ष , मनोचिकित्सकों की टीम से लैस एक काऊंसिलिग कक्ष तथा और भी कई सुविधाओं से इन्हें सज्जित किया गया है । इन पारिवारिक अदालतों में . जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि ,पारिवारिक मुकदमें, तलाक अर्जियां, गुजारे भत्ते के लिए डाले गए दावे , बच्चों की अधिकारिता (गार्जियनशिप ) के मुकदमे आदि को निपटाया जाएगा । ये पारिवारिक अदालतें इस लिए भी शुरू की गई हैं ताकि उन मामलों को विशेषज्ञों की देखरेख और सलाह से निपटाया जाए जिन्हें अदालती कार्यवाहियों में नहीं निपटाया जा पाता है या फ़िर कि सालों साल लग जाते हैं , कोशिश ये की जानी है कि परिवार टूटने की जगह दोबारा एक हो जाएं । निसंदेह ये अदालतें आने वाल समय में क्रांतिकारी साबित होंगी ॥
शनिवार, 13 फ़रवरी 2010
क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती हैं पारिवारिक अदालतें
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कोशिश ये की जानी है कि परिवार टूटने की जगह दोबारा एक हो जाएं । निसंदेह ये अदालतें आने वाल समय में क्रांतिकारी साबित होंगी ॥
जवाब देंहटाएंकाश ऐसा ही हो .. बेवजह बहुत सारे परिवार टूटते जा रहे हैं !!
इन अदालतों का काम काउंसलिंग होगा। यह अच्छी पहल है। पूरे देश में यह काम होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंएक बहुत अच्छी पहल है यह, आज कल देखा है छोटी सी बात पर तलाक हो जाते है, आशा है यह आदालते झगडो को निपटा कर फ़िर से परिवार को जोडने का काम करे
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