अरे भाई ये मैं नहीं कह रहा हूं , ये तो कुछ दिनों पहले "न्यायपालिका में ई गवर्नेंस " के विषय पर एक व्याख्यान देते हुए ये बात आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री वी वी राव ने कहा कि देश की अदालतों में अभी लंबित कुल सवा तीन करोड मुकदमों को यदि आज से निपटाना शुरू किया जाए तो वर्तमान में न्याय प्रक्रिया की , न्यायाधीशों की उपलब्धता की और ऐसी ही सभी आधारों पर उन्हें निपटाने में कम से कम तीस सौ बीस साल लगेंगे जी हां बस इतना सा ही समय लगेगा तो तब तक धैर्य रखना चाहिए ।
दरअसल इसके लिए किसी एक व्यवस्था या नीति को सीधे सीधे जिम्मेदार भी नहीं ठहराया जा सकता है । मोटे मोटे आंकडों के अनुसार आज देश के प्रत्येक न्यायाधीश पर लगभग ढाई हज़ार मामलों का बोझ है । भारत में अभी लंबित पडे मुकदमों के लिए , अभी 18 हज़ार पदों की व्यवस्था है मगर उनमें से भी चार हज़ार पद तो अभी भी रिक्त पडे हुए हैं ।खुद उच्चतम न्यायालय ने एक बार माना था कि भारत में कुल 10 लाख की आबादी पर कम से कम 50 न्यायाधीशों की आवश्यकता है जबकि अभी वो संख्या सिर्फ़ 10 न्यायाधीश की है । ऐसी स्थितियों में ये अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है सरकार और प्रशासन सच में आम लोगों को त्वरित और सुलभ न्याय दिलवाने के लिए कितनी गंभीर और संवेदनशील हैं ? हालांकि इस दिशा में अब थोडी बहुत शुरूआत तो हो चुकी है कई राज्यों में प्रति वर्ष नियुक्तियां भी की जा रही हैं , मगर जिस अनुपात में मुकदमे बढ रहे हैं उस अनुपात में ये प्रयास ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है ।
आज जरूरत इस बात की है कि आम आदमी को सुलभ , सस्ता और त्वरित न्याय के लिए एक साथ बहुत से क्षेत्रों पर काम किया जाए । सबसे पहली कोशिश तो ये होनी चाहिए कि जल्द से जल्द न सिर्फ़ सभी खाली पदों को भरा जाए बल्कि , अधिक से अधिक अदालतों का गठन किया जाए । अदालत पहुंचने से पहले , छोटे विवाद, घरेलू विवाद, वैवाहिक मामले, आदि गैर आपराधिक मामलों को मध्यस्थता बीचबचाव की प्राचीन व्यवस्था से निपटाने के प्रयासों में बढावा दिया जाना चाहिए । प्ली बारगेनिंग, लोक अदालतों आदि जैसी व्यवस्थाएं जिन्हें पश्चिमी देशों में सफ़लतापूर्वक प्रयोग में लाया गया है उन्हें भी भारतीय न्याय व्यवस्था में अपनाने पर बल दिया जाए । इसके अलावा अधिवक्ताओं में भी व्यावसायिक प्रतिबद्धता, अदालती कर्मचारियों में फ़ैले भ्रष्टाचार पर अंकुश , अदालत के कार्य दिवसों में वृद्धि आदि पर भी ध्यान देना आवश्यक है ॥ किंतु फ़िलहाल तो स्थिति बहुत ही शोचनीय और चिंताजनक है ।
शनिवार, 13 मार्च 2010
सिर्फ़ 320 साल तक प्रतीक्षा करें ..न्याय सबको मिलेगा
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कोई दिक्कत नहीं.. इस देश के लोग बेवकूफ बनाने के लिये ही हैं.. न जाने कितने किस्से पढ़े हैं कि मजिस्ट्रेट साहब ने रेलवे में कोई दिक्कत होने पर वहीं मुकदमा कर फैसला कर दिया... लेकिन जब मामला दूसरों का हो तो..... भ्रष्टाचार की बात पर तो चुप ही रहना अच्छा.... जबावदेही होना चाहिये और गुप्तचर विभाग अच्छा हो, सही जानकारी दे जिस पर सरकार खुद कुछ फैसले ले तो काफी दिक्कतें दू हो सकती हैं..
जवाब देंहटाएंहाहाहा , कर लेंगे इन्तजार भईया ।
जवाब देंहटाएं(1)...और 320 सालों तक कोई भी ऐसा काम न करें कि अदालत जाना पड़े वर्ना बैकलाग ख़त्म करने का क्या फ़ायदा.
जवाब देंहटाएं(2) तीस हज़ारी कोर्ट, दिल्ली के वकीलों को भी यह पोस्ट पढ़वाई जानी चाहिये कि कोई भी नया कोर्ट खुलने की ख़बर सुनते ही रोज़-रोज़ नाहक हड़तालों पर न दौड़ा करें...320 साल के लायक काम तो आज भी उनके आगे पड़ा है, और कितना चाहिये...
मेरा मानना है कि मौजूदा व्यवस्था चाहती ही नहीं कि न्याय हो। क्या मौजूदा न्याय व्यवस्था केवल औपचारिकता नही रह गई है?
जवाब देंहटाएंक्या करूं सर सरकारी सेवा की कुछ मजबूरियां हैं ..अन्यथा मन तो करता है...सब कुछ खोल कर रख दूं ...आखिर दुनिया को पता तो चले असलियत ..इंतज़ार है उस वक्त का ....
जवाब देंहटाएंहा हा हा काजल भाई ...आपकी सलाह दिल्ली के वकीलों को पढवा दी तो एक और हडताल कर देंगे वे ...
अजय कुमार झा
जस्टिस डिलेड इज़ जस्टिस डिनाइ़ड...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
अजी ३२०?? ....कहते है , सुना है, भगवान २०१२ मै ही सब निपटारे कर देगा:)
जवाब देंहटाएंतभी तो मेरा देश महान, करे ना कोई काम
वाकई स्थिति बहुत ही शोचनीय और चिंताजनक है...
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