देश के सामने भविष्य में जो कुछ चुनौतियां विकराल रूप में आने वाली हैं , उन्हीं में से एक निश्चित रूप से मुकदमों की बोझ से जूझती न्यायपालिका भी होगी । देश की मौजूदा न्यायिक व्यवस्था के आकलन के लिए सिर्फ़ एक ही तथ्य काफ़ी है , वो ये कि वर्तमान में देश की अदालतों में लगभग साढे तीन करोड मुकदमे लंबित पडे हैं । भविष्य में स्थिति के बिल्कुल नारकीय होने की प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही है और इसके लिए पुख्ता कारण भी हैं । प्रति वर्ष बनने बनाए जाने वाले नए ने कानून , उनके उपयोग से ज्यादा दुरूपयोग किए जाने की आशंका और कम पडते न्यायिक संसाधन , यानि देश में अदालतों ,न्यायाधीशोंण आदि की कमी , देश की न्याय व्यवस्था को बेहद धीमा कर देंगे ।
पिछले एक दशक में समाज में अपराध की दर में तीव्र वृद्धि , जीवन व विकास के लिए बढती महात्वाकांक्षा के कारण पैदा हुई गला काट प्रतिस्पर्धा , कानून के उपयोग-दुरूपयोग से अदालतों में मुकदमों की संख्या लगातार द्विगुणित हो रही है । सरकार व प्रशासन तो मौजूदा लंबित मुकदमों के निस्तारण व्यवस्था में ही खुद को पस्त मान चुकी है । हालांकि पिछले एक दशक में भारतीय न्यायिक व्यवस्था ,पश्चिमी देशों की न्यायिक प्रक्रियाओं या जिन्हें वास्तविक अर्थों में वैकल्पिक न्यायिक प्रक्रियाएं कहा जाए तो बेहतर होगा , को प्रयोग में लाकर बहुत महत्वपूर्ण उपाय तलाशा है ।
भारत की पुरातन प्रणाली से लेकर आज की आधुनिक प्रणाली तक न्याय व्यवस्था बहुस्तरीय रही है और ऐसा इसलिए है ताकि न्याय की पूर्ण स्थापना हो सके । राज्य का अपने नागरिकों के प्रति जो अहम कर्तव्य होता है उसमें से एक प्रमुख होता है आम नागरिकों सस्ता व सुलभ तथा त्वरि न्याय उपलबध कराए , किंतु अभी भी प्रति व्यक्ति न्यायाधीश या अदालतों की उपलब्धता वैश्विक न्याय व्यवस्ता के मापदंडों से बहुत पीछे है । हालांकि सरकार अपनी ओर से अदालतों पर बढ रहे मुकदमों को कम करने के लिए कई नई योजनाओं पर कार्य कर रही है जिसके तहत अभी हाल ही में मिशन मोड परियोजना को भी शुरू किया गया है ।
इसके अलावा पिछले कुछ सालों में परंपरागत व्यवस्था के अतिरिक्त मध्यस्थता केंद्र , लोक अदालत , सांध्यकालीन अदालत , ई कोर्ट ,प्ली बारगेनिंग , गरीबों के लिए मुफ़्त कानूनी सहायता दिलाने हेतु विधिक सेवा प्राधिकरण की स्थापना , कारागारों में शिक्षा एवं प्रशिक्षण ,न सिर्फ़ कानूनी अधिकारों का बल्कि जीविकोपार्जन के उद्देश्य से भी , समय समय पर चलाए जाने वाले कानूनी साक्षतरा अभियान आदि जैसे कई वैकल्पिक न्यायिक प्रक्रियाओं से भविष्य की चुनौतियों से निपटने की तैयारी हो रही है । इनके अलावा कागज़रहित अदालतें , ग्राम अदालतों की स्थापना आदि पर भी तेज़ी से कार्य चल रहा है ।
भारतीय ग्राम्य समाज के न्यायिक इतिहास में किसी भी विवाद के निपटारे में एक प्रधान भूमिका आपसी समझौते या मध्यस्थता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रहती आई है । ग्राम पंचायतों द्वारा पूरे समाज के गंभीर से गंभीर विवादों व अपराधों तक की सुनवाई का चलन रहा है । शहरी समाज में बढते दांपत्य विवाद ,पैसे के लेन देन, ऋण कर्ज़ विवाद तथा दुर्घटना मुआवजा वाद एवं श्रमिक प्रबंधन विवाद जैसे कानूनी निर्णय वाले विवादों के निपटारे के लिए आधुनिक न्यायिक व्यवस्था में भी वैकल्पिक ,न्यायिक प्रकिया के रूप में स्थापित हुआ -मध्यस्थता केंद्र । आज देश की बहुत सारी अदालतों में मध्यस्थता केंद्रों द्वारा न्यायाधीशों व परामर्श एवं विधिक प्रक्रियाओं के ज्ञाता अधिवक्ताओं की दक्ष व प्रशिक्षित टीम की सहायता से अदालती बोझ को कम करने की कोशिश एक बेहतर रंग ला रही है । महानगरीय जीवन के बढते वैवाहिक पारिवारिक विवादों के लिए ये चमत्कारिक साबित होती है हैं । सरकार व प्रशासन इनकी सफ़लता से इतना उत्साहित हुई कि अदालती वादों केल इए मध्यस्थता केंद्रों की स्थापना के अतिरिक्त सभी क्षेत्रों के विशेष कार्यकारी दंडाधिकारी के कार्यालयों के पास भी मध्यस्थता केंद्रों की स्थापना की गई है । इन केंद्रों में अदालत पूर्व विवादों समस्याओं को सुना व निपटाया जा रहा है ।
सुलह समझौते की प्रक्रिया को तरज़ीह देती दूसरी शुरूआत रही लोक अदालतों की स्थापना । प्रारंभे में विशेष संस्थाओं ,नगर निगम , ट्रैफ़िक , टेलिफ़ोन , बिजली , पानी आदि के संबंधित वादों को लिया गया । इसके पश्चात इन लोक अदालतों ने देश की अदालतों में तेजी से बढे १३८ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत लाखों में दायर किए गए मुकदमों को निपटाने में बढी भूमिका निभाई । इन लोक अदालतों को व्यापक व प्रभावी बनवाने के लिए विशेष मेगा लोग अदालतों का अयोजन तथा स्थाई लोक अदालतों की स्थापना की गई । इसका परिणाम ये रहा कि मुकदमों के निस्तारण के रफ़्तार में एक गति महसूस की गई । दिल्ली ,कोलकाता , मुंबई आदि नगरों महानगरों में इनकी उपलब्धि व महत्व उल्लेखनीय रही हैं ।
अदालतों में कामकाज के घंटों में कमी को महसूस करते हुए विशेष रूप से सांध्यकालीन अदालतों की संकल्पना की गई । आज अहमदाबाद एवं दिल्ली में विशेष सांध्यकालीन अदालतों का परिचालन सफ़लतापूर्वख किया जा रहा है । आज ई-तकनीक का युग है ऐसे में बहुत आवश्यक था कि विधि व तकनीक के सामंअज्स्य को न्याय क्षेत्र के लिए सकारात्मक दिशा देते हुए उसे न सिर्फ़ अपनाया जाए बल्कि प्रोत्साहित किया जाए । देश की सभी अदालतों को कंप्यूटरीकृत करने का कार्य चल रहा है । पिछले कुछ वर्षों में देश में बहुत सी कागज़ रहित ई अदालतों की स्थापना ने इस ओर के महत्वपूर्ण परिवर्तन के संकेत दे दिए हैं ।
न्यायिक प्रक्रियाओं में प्ली बारगेनिंग व्यवस्था की शुरूआत ने कहीं न कहीं चली आ रही दंडीय विधान व्यवस्था को नया विकल्प दे दिया । पीडितों को न्याय के मानवीय पहलू से परिचय कराते हुए दंड राशि को मुआवजे के रूप में दिए जाने की पहल की गई । बेशक इन शुरूआती चरणों में ये तमाम वैकल्पिक न्यायिक प्रक्रियाएं नाकाफ़ी और बहुत छोटी लग रही हों , किंतु आने वाले समय में ये प्रयास नि: संदेह क्रांतिकारी परिणाम देने वाले साबित होंगे ।