जिस तरह तेज़ी से शहरों में वाहनों की संख्या बढती जा रही है अफ़सोस और दुख की बात है कि उसी तेज़ी से मोटर वाहन दुर्घटनाएं बढ रही हैं । महानगरों में तो स्थिति नारकीय सी बन गई है और इसके कई कारणों में एक सबसे बडा कारण है खुद लोगों की लापरवाही । आज आपको बताते हैं कि एक मोटर वाहन दुर्घटना की चपेट में यदि आप कभी आ जाते हैं ( यहां दोनों पक्षों की तरफ़ की बात की जा रही है , यानि कि चाहे पीडित हों या आरोपी ) तो आपको किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि आप खुद की , समाज की और कानून की भी सहायता कर सकें ।
पहले जानते हैं उन बातों को , जिनका ध्यान रखने से मोटर वाहन दुर्घटना की चपेट में आने से खुद को बचाया जा सकता है
इन सब स्थितियों के बावजूद भी अगर , आप मोटर वाहन दुर्घटना में फ़ंस जाते हैं तो आपको ये निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए१. वाहन को तभी लेकर मुख्य सडक पर आएं जब आप उसे पूरी तरह चलाना सीख चुके हों । इससे पहले दक्षता के लिए चाहे आपको कुछ दिन ज्यादा प्रतीक्षा करनी पडे , किंतु मुख्य सडकों पर पहुंचकर दुर्घटनाग्रस्त होने /करने से तो ये बेहतर ही है ।अगर सीख रहे हैं तो साथ में किसी ऐसे व्यक्ति का होना जरूरी है जिसके पास वैध ड्राइविंग लाईसेंस हो
२. अपना लाइसेंस हमेशा साथ रखें और हमेशा उसी वाहन को चलाएं जिसके लिए आप लाइसेंस धारक हैं ।
३. वाहन के सभी कागजात , बिल्कुल वैध , एवं दुरूस्त रखें । बीमा , प्रदूषण प्रमाण पत्र , पंजीकरण प्रमाण पत्र आदि सब कुछ गाडी में ही रखें । यदि आप शहर में ही हैं और शहर से बाहर नहीं जा रहे हैं तो आप अपने मूल प्रमाण पत्रों के स्थान पर उनकी छायाप्रति ( जो कि किसी राजपत्रित अधिकारी द्वारा सत्यापित हो ) भी रख सकते हैं , लेकिन शहर से बाहर जाने की स्थिति में सभी मूल कागजात साथ रखना बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए ।
४. दुर्घटना हो जाने की स्थिति में यदि पीडित पक्ष की ओर हैं तो जहां तक हो सके धीरज बनाए रखें , और सबसे पहले खुद की या चोटिल की सुरक्षा का ध्यान रखें । अगर दुर्घटना आपसे हो गई है तो किसी भी स्थिति में वहां से भागने का प्रयास न करें । सिर्फ़ एक मिनट भर को ये याद करें कि , चोटिल व्यक्ति की जगह पर कोई आपका अपना हो या आप कभी खुद हों तो , इसलिए कोशिश यही करनी चाहिए कि चोटिल की सहायता सबसे पहले की जानी चाहिए । स्मरण रहे कि , भारत में दुर्घटना में चोटिल व्यक्तियों में से साठ प्रतिशत की मृत्यु समय पर चिकित्सकीय सहायता न मिलने के कारण ही हो जाती है ।
५. कभी भी विपरीत परिस्थितियों में , यानि कि , किसी भी तरह का नशे का सेवन करने के बाद , बेहद खराब मौसम में , या फ़िर जल्दी पहुंचने के लिए जबरन बने बनाए रास्तों को चुनने , आदि जैसे हमेशा ही दुर्घटनाओं को आमंत्रित करने जैसा होता है । इसलिए प्रयास ये करना चाहिए कि यथा संभव ऐसी स्थितियों से बचा जा सके ।
६. आजकल एक प्रवृत्ति , महानगरो और शहरों में बहुत तेज़ी से पनपती दिख रही है , वो है , अपने नाबालिग बच्चों को वाहन चलाने की अनुमति देना । ये कितना घातक कदम साबित हो रहा है आज इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन नाबालिग चालकों ने पिछले कुछ वर्षों मे मोटर वाहन दुर्घटना की दर में उन्नीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी है और इससे भी बढकर इन दुर्घटनाओं में चोटिल व्यक्तियों के मरने का प्रतिशत चौहत्तर प्रतिशत तक है ।विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी बच्चों को वाहन चलाने के अनुमति नहीं दी जानी चाहिए । किंतु यदि फ़िर भी ऐसी स्थिति आ ही जाती है तो उसके पीछे किसी न किसी वयस्क को जरूर बैठा होना चाहिए ।
१. पीडित पक्ष को चोटिल व्यक्ति की सुरक्षा को पहली प्राथमिकता देने के साथ साथ अन्य वैधानिक बातों का ध्यान भी रखना चाहिए । ये ठीक है कि दुर्घटना पीडित पक्ष के लिए उस समय कुछ भी सोचने का वक्त नहीं होता है , किंतु फ़िर भी दुर्घटना में लिप्त गाडी का नंबर , उसका मेक , आदि कम से कम उस समय अवश्य ही जेहन में रहना चाहिए जब वो पुलिस को बयान दे रहे हों । चाहे इसके लिए पीडित कितना ही समय ले ले । यदि दुर्घटना आपसे हुई है तो आपको अपना लाइसेंस , वाहन से संबंधित सभी कागजात , आदि सब कुछ जांच कर रहे पुलिस अधिकारी को सौंपनी चाहिए , ताकि पुलिस सभी कागजातों की वैधता की जांच करके बीमा कंपनियों को मुआवजे की राशि देने के लिए सौंप सके ।
२. अगर आप चोटिल पक्ष की तरफ़ हैं तो एक बात का विशेष ध्यान रखें कि आजकल मोटर वाहन दुर्घटना क्लेम ,के वाद दायर करने करवाने के लिए अस्पतालों के आसपास दलाल और कई बार तो खुद पुलिस वाले भी अस्पताल में ही किसी वकील आदि कर लेने की सलाह देते हैं जो कि सर्वथा गलत प्रवृत्ति है । अस्पताल से छुट्टी लेने के बाद आराम से सोच विचार कर मोटर वाहन दुर्घटना क्लेम याचिका तैयार करने के लिए अधिवक्ता किया जाना चाहिए ।ईलाज के दौरान के सभी कागजात , दवाईयों के बिल , डॉक्टर के प्रेसक्रिप्शन आदि को सहेज़ कर रखें । यहां तक कि उस दौरान ईलाज़ के लिए घर से अस्पताल तक आने जाने के किए गए खर्च की पर्ची , विशेष पौष्टिक आहार लेने की पर्ची , यदि कोई निजि सहायक रखा गया है तो उसके वेतन आदि के बाबत सब कुछ संभाल के रखा जाना चाहिए ।
३. पीडित अथवा चोटिल व्यक्ति ( दुर्घटना में मृत्यु हो जाने की स्थिति में मृतक के विधिक उत्तराधिकारी ) को मोटर वाहन दुर्घटना क्लेम के लिए अपनी आय का ( दुर्घटना में मृत्यु हो जाने की स्थिति में मृतक की ), और व्यय का ब्यौरा , वेतन , व्यवसाय आदि का प्रमाण , भी जरूर पेश किया जाना चाहिए । अन्यथा अदालत न्यूनतम वेतन राशि को आधार मानकर ही बीमा कंपनियों को मुआवजा देने का फ़ैसला सुनाती हैं ।
४. पीडित अगर वाहन दुर्घटना के समय वाहन का नंबर नोट नहीं कर पाया हो और पुलिस भी किसी तरह से उस वाहन को तलाश न पाई हो तो फ़िर उस स्थिति में स्थानीय एसडीएम कार्यालय में आवेदन करके दुर्घटना में राज्य सरकार की तरफ़ से मिलने वाले राज्य सरकार के मुआवजे के प्रयास करना चाहिए ।
५. दुर्घटना के आरोपी को ,सबसे पहले तो वाहन से संबंधित सभी कागजात पुलिस को अदालत को सौंप देने चाहिए ताकि बीमा कंपनी मुआवजे के लिए तैयार हो सके । अगर किसी भी तरह से कागज़ों में कोई कमी है तो अविलंब ही पीडित पक्ष के साथ समझौते का प्रयास करना चाहिए । कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि दोनों पक्ष समझौता चाहते हुए भी खुलकर आपस में बात नहीं कर पाते , कई बार अधिवक्ताओं की तरफ़ से मनाही होती है , किंतु जहां पर कागज़ ठीक नहीं है यानि बीमा कंपनी ने अपने ऊपर से जिम्मेदारी बचा ली है तो उस स्थिति में तो समझौता करना ही श्रेयस्कर होता है , ऐसी स्थिति में अदालतों में स्थापित मध्यस्थता केंद्रों में बैठ कर बातचीत की जानी चाहिए । ऐसा इसलिए क्योंकि यदि अदालत बाद में मुआवजे की राशि का आदेश भी सुनाती है तो वाहन चालक /मालिक द्वारा उस राशि को देने से बचने के लिए घरबार तक छोड के निकल भागने की संभावना ज्यादा होती है ।
६. यदि आरोपी को लगता है कि कहीं न कहीं चोटिल व्यक्ति की भी गलती थी ,दुर्घटना के लिए वो भी कहीं न कहीं जिम्मेदार था तो वो अदालत से पीडित की आंशिक असावधानी को भी ध्यान में रखने का आग्रह कर सकता है । ऐसा अक्सर उन मुकदमों में किया जाता है जहां , चोटिल व्यक्ति के चिकित्सकीय परीक्षण के दौरान अल्कोहल यानि शराब के सेवन किए हुए की बात सामने आती है ।
यदि इन बातों को ध्यान में रखा जाए तो कम से कम मोटर वाहन दुर्घटना में पीडितों के दर्द को कुछ हद तक अवश्य ही कम किया जा सकता है ।
kaanooni evam upyogi jaankari!
जवाब देंहटाएंएक जरुरी पोस्ट बहत बहत आभार ...
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट....
जवाब देंहटाएं.. काश की ये पोस्ट कुछ समय पहले आ जाती :(
बहुत अच्छी जानकारी दी आप ने, हमारे यहां तो इन मे से एक भी बात मे कोतही बरतने पर सजा हो जाती हे, १०० % लोग भागते नही, ओर नाबालिग बच्चे, ओर बिना लाईसेंस वाले कार या अन्य वाहन की ड्राईविंग सीट पर बेठते भी नही, क्योकि इस की सजा बहुत ज्यादा हे बच्चे को ओर उस के मां बाप को ओर जिस का बाहन हे उस को.
जवाब देंहटाएंफ़िर भी कभी भारत मे पंगा पडा तो हम तो आप को पकडेगे, बच कर नही जाने दे, ओर ना ही फ़ीस ही देगे( वैसे भारत मे मै ओर मेरे बच्चे कभी भी कार नही चला पाते, ओर ना ही चलाते हे)
बहुत उपयोगी आलेख।
जवाब देंहटाएंभाटिया जी सजा के उपबंध तो भारत के कानून में भई हैं। पर पुलिस और अदालत दोनों बहुत कम हैं। नागरिक भी इस की शिकायत नहीं करते। किसी को किसी की फिक्र नहीं है।
अत्यंत उपयोगी आलेख के लिये साधुवाद
जवाब देंहटाएंरोजमर्रा के जीवन में बेहद उपयोगी जानकारी । आभार सहित...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन जानकारी भय्या... बहुत उपयोगी है.
जवाब देंहटाएं