शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2015

अजब गजब किस्से कचहरी के








यूं तो कचहरी  में रोज़ ही एक नहीं बल्कि अनेक , किस्से कहानियां और दास्तानें ऐसी देखने सुनने को मिल जाती हैं कि उन्हें दर्ज करने लगूं तो पोस्ट निरंतर ही लिखने की जरूरत पड़ेगी और सोचता हूँ कि ऐसा हो भी जाए तो पिछले दिनों लगभग छूट चुकी ब्लौंगिंग  में भी एक नियमितता आ जायेगी | खैर आज कानूनी मसलों , समस्याओं और गंभीर समाचारों से इतर कुछ मनोरंजक और दिलचस्प दो घटनाओं का ज़िक्र करने का मन है |

मेरी नियुक्ति इन दिनों , दिल्ली जिला न्यायालय के पूर्वी , उत्तर पूर्वी और शाहदरा जिला अदालतों के संयुक्त परिसर कडकड़डूमा न्यायालय के  अभिलेखागार (दीवानी ) में बतौर अभिलेखपाल है | यहाँ तीनों जिलों की अदालतों  द्वारा वर्ष २००३ से लेकर अब तक निष्पादित निस्तारित निर्णीत लगभग सत्तर हज़ार से अधिक वाद अभिलेख का देख रेख, परिचालन आदि का कार्य हम लोग करते हैं | इसी दौरान एक बेहद दिलचस्प बात सामने आयी |

अदालतों से निर्णित वाद जब अभिलेखागार में संरक्षित होने के लिए आते हैं तो उन्हें उनके सभी ब्यौरे समेत पंजिका यानि रजिस्टर में दर्ज करने के बाद हम उसे एक विशिष्ट अभिलेख संख्या देते हैं जिन्हें उर्दू में "गोशवारा संख्या " कहा जाता है | ये गोशवारा संख्या समझिये कि अभिलेखागार में संरक्षित हर वाद का पता है जिसके अनुसार ही सत्तर हज़ार अभिलेखों या उससे भी अधिक निर्णीत वादों में से उसे आसानी से महज़ चंद सेकेंडों में निकाला जा सकता है |

पिछले दिनों एक अधिवक्ता महोदय ऐसी ही एक निर्णीत वाद अभिलेख के निरीक्षण के लिए पधारे | उन्होंने जो गोशवारा संख्या बताई हमने जब उसके अनुसार फाईल को तलाशा तो हमें वह वहां नहीं मिली | हम परेशान हैरान कि आखिर ऐसा कैसे हुआ | हम अपने रजिस्टरों को खंगाल ही रहे थे कि इतने में अभिलेखागार में हमारे साथ नियुक्त सबसे पुराने सहकर्मी साथी  आ पहुंचे | हमने उन्हें सारा माज़रा समझाया | सारा किस्सा सुनते ही उनके होठों पर एक मुस्कान तैर गयी | उन्होंने जो बताया आप भी सुनिए .........................

उस वर्ष अभिलेखागार में दो बाबुओं नरेंद्र और मोहन की नियुक्ति थी | जाने जानकारी के अभाव में , या किसी और वजह से दोनों बाबुओं ने उस वर्ष एक ही जैसे गोशवारा नंबर बहुत सारी फाईलों को दे दिए | जब तक गलती समझ में आती बहुत देर हो चुकी थी सो उसका तोड़ निकाला गया ये कर के , जो गोशवारा नंबर नरेन्द्र बाबू ने दिए थे उन सबके साथ लग गया "N  " और जो गोशवारा नंबर मोहन बाबू ने दिए थे उन पर लगा "M "  तो आज तक भी वही एम् और एन चला आ रहा है और अब भी हम कभी कभी एन और एम् के चक्कर में फंस जाते हैं और फिर हर बार उसी किस्से को याद करके मुस्कुरा उठते हैं |

दूसरा किस्सा ये रहा कि एक दिन एक अधिवक्ता एक फाईल का निरीक्षण करने पहुंचे | निरीक्षण के दौरान उस वाद में वादी/प्रतिवादी द्वारा संलग्न एक फोटो पर आ कर रुक गए | असल में दीवानी वाद जिनमें संपत्ति के आधिपत्य को लेकर प्रमाणस्वरूप उस दिन का अखबार हाथ में लेकर फोटो खिंचवा कर उसे वाद के साथ संलग्न कर देते हैं | तो उसी फोटो पर आकर वकील साहब रुक गए और फिर शुरू हुई कोशिशें उस अखबार पर दर्ज तारीख को पढने की | वाद फाईल को पढने पर भी छोटा सुराग तो मिल रहा था किन्तु ये पुख्ता तौर पर नहीं पता चल पा रहा था कि वो किस तारीख का अखबार था | वकील साहब समेत हम सब , पहले अपने चश्मों से , फिर मोबाईल से फोटो खींच कर उसे ज़ूम करके , मोबाइल में लैंस एप्प से , स्टेशनरी की दुकान  से लेंस मंगवा के कुल मिला कर दर्ज़न भर कोशिशों के बाद सबने हथियार डाल दिए | बाद में तय हुआ कि वकील साहब उस फाईल में दर्ज आस पास की तिथियों के अखबार को सीधे अखबार के दफ्तर में जाकर पता करने की कोशिश करेंगे |