देरी से मिलने वाला न्याय , अन्याय के समान है। भारतीय न्यायिक व्यवस्था अवेम धीमी न्यायिक प्रक्रिया के सम्बन्ध में ये एक प्रचलित वाक्य है। एक आंकडे के मुताबिक देश की अदालतों में इस वक्त तीन करोड़ से अधिक मुकदमें लंबित हैं। मुकदमों की अधिकता के अलावा लम्बी न्यायिक प्रक्रिया, लोगों की अज्ञानता आदि कई कारणों से मुकदमों को फैसले तक पहुँचने में देर हो ही जाती है। ऐसा नहीं है की इस स्थति से निपटने के लिए प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।
अभी कुछ वर्षों पूर्व ही काफी पहले से लंबित मुकदमों को जल्दी निपटाने के लिए विशेष त्वरित अदालतों या फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया गया था। इनमें वरीयता के आधार पर सात वर्ष पुराने मुकदमों को त्वरित न्याय अदालतों में स्थानांतरित कर दिया जाता है। जहाँ प्रतिदिन सुनवाई के आधार पर जल्दी से जल्दी मुकदमों का निपटारा किया जाता है। इसके अलावा उच्च न्यायालय और उच्चत्तम न्यायालय से भी समय समय पर पुराने मुकदमों को जल्द निपटाने के लिए दिशा निर्देश जारी किए जाते रहे हैं। अभी कुछ समय पूर्व ही ऐसा एक आदेश आया था जिसमें कहा गया था की अदालतों को अन्तिम बहस सुनने के बाद पन्द्रह दिनों के भीतर ही अपना फैसला सुना देना होगा।
अभी कुछ दिनों पूर्व ही राजधानी की अदालतों में सुधारों के प्रयासों में एक और कदम बढाते हुए अन्य बहुत से उपायों के साथ पुराने मुकदमों से निपटने के लिए कई नए क्रांतिकारी उपाय किए जाने की योजना बने है।
न्यायिक अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं की वे सुनिश्चित करें की जिन मुकदमें जिनमें आरूपी कारागार में हैं उन्हें एक वर्ष के भीतर तथा जिनमें जमानत पर ह्जैं उन्हें दो वर्ष के अन्दर निपटा दिया जाए।
पुराने मुकदमों की तरफ़ विशेष ध्यान आकृष्ट करने के लिए पहली बार रंग-बिरंगी फाईलों का प्रयोग किया जा रहा है ताकि वे आसानी से पहचानी जा सकें एवं उन पर ध्यान केंद्रित रह सके। इस आदेश के तहत, १० वर्ष से अधिक पुराने मुकदमों की फाईल लाल रंग की, ५ वर्ष से पुराने मुकदमों की फाईल नीले रंग की, वे मुकदमें जिनमें उपरी अदालतों द्वारा कोई विशेष निर्देश दिया गया है, उनका रंग हरा होगा तथा वरिस्थ नागरिकों से सम्बंधित फाईलें पीले रंग की होंगी।
इसके साथ ही ये निर्देश भी दिया गया है की सभी न्यायिक अधिकारी अपने डायस पर अपनी अदालत में लंबित पुराने मुकदमों की सूची चिपका कर रखेंगे ताकि उनके ध्यान में वे मुकदमें रहे। इसके अलावा उन्हें वर्ष २००९ के लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित करने को भी कहा गया है और वर्ष की समाप्ति पर पुराने मुकदमों संबन्धी विस्तृत रिपोर्ट भेजने के लिए भी कहा गया है।
शीघ्र और सुलभ न्याय दिलाने के लिए न्यायपालिका अपनी और से कई तरह के उपाय कर रही है। सरकार और प्रशाशन को भी चाहिए की इन उपायों के अमलीकरण में यथासम्भव सहयोग दें ताकि न्यायपालिका को अत्यधिक कार्यबोझ से मुक्त किया जा सके.
गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009
सोमवार, 2 फ़रवरी 2009
अब अदालत कर्मचारी भी होंगे वर्दीधारी
न्यायपालिका को चुस्त दुरुस्त करने और नया आधुनिक रूप देने की कवायद मैं राजधानी की जिला अदालतों में एक और नयी पहल की गयी है। दिल्ली उच्च न्यायालय के बाद अब राजधानी की सभी नौ जिला अदालतों के कर्मचारियों को वर्दी पहनाने का काम शुरू हो चुका है। ज्ञात हो की अब तक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों एवं nयायिक अधिकारियों पर ही ड्रेस कोड लागू था, मगर अब बहुत से अलग अलग कारणों से सबको वर्दी पहनाई जा रही है। पुरूष एवं महिला कर्मचारियों के लिए अलग अलग रंग तय करने के बाद उनकी सिलाई हेतु नाम लिया जा चुका है और जल्दी ही उन्हें पहना भी दिया जायेगा।
जहाँ तक इसकी पीछे के कारणों की बात है तो उसमें निसंदेह पहला कारण तो भ्रष्टाचारपर अंकुश लगना ही है। वर्दी पहने कर्मचारी कहीं भी आसानी से पहचाने जा सकेंगे। दूसरा ये की इससे अदालतों को दिया जा रहा नया चेहरा शायद ज्यादा आकर्षक बन पायेगा। ऐसा भी सोचा जा रहा है की वर्दी पहनने के बाद शायद कर्मचारियों में एक स्वाभाविक जिम्मेदारी का एहसास हो सके।
ये तो आने वाला समय ही बतायेगा, की पहनावे का ये परिवर्तन कर्मचारियों के विचार और व्यवहार को कितना बदल सकेगा। अलबत्ता इतना तो तय है की राजधानी में शुरू की गयी इस पहल से अदालतों का स्वरुप कुछ आकर्षक जरूर बनेगा। इसे और कहाँ कहाँ अपनाया जाता है ये भी देखने वाली बात होगी। फिलहाल मेरी सोच वाले सभी अधिकारी/कर्मचारी अपनी नयी वर्दीधारी लुक के बारे में सोच कर बेहद रोमांचित हैं.
जहाँ तक इसकी पीछे के कारणों की बात है तो उसमें निसंदेह पहला कारण तो भ्रष्टाचारपर अंकुश लगना ही है। वर्दी पहने कर्मचारी कहीं भी आसानी से पहचाने जा सकेंगे। दूसरा ये की इससे अदालतों को दिया जा रहा नया चेहरा शायद ज्यादा आकर्षक बन पायेगा। ऐसा भी सोचा जा रहा है की वर्दी पहनने के बाद शायद कर्मचारियों में एक स्वाभाविक जिम्मेदारी का एहसास हो सके।
ये तो आने वाला समय ही बतायेगा, की पहनावे का ये परिवर्तन कर्मचारियों के विचार और व्यवहार को कितना बदल सकेगा। अलबत्ता इतना तो तय है की राजधानी में शुरू की गयी इस पहल से अदालतों का स्वरुप कुछ आकर्षक जरूर बनेगा। इसे और कहाँ कहाँ अपनाया जाता है ये भी देखने वाली बात होगी। फिलहाल मेरी सोच वाले सभी अधिकारी/कर्मचारी अपनी नयी वर्दीधारी लुक के बारे में सोच कर बेहद रोमांचित हैं.
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