जो लोग अक्सर ख़बरों में पढ़ते हैं की अदालतों में पहले से ही इतने ढेर सारे मुकदमें लंबित हैं तो फिर इन अवकाशों को क्यूँ नहीं समाप्त कर देना चाहिए..इस आलेख के माध्यम से मेरी कोशिश होगी की कुछ बातें जो आम तौर पर लोगों को पता नहीं होती , वो आप सबके सामने राखी जाए ताकि कुछ भ्रांतियां दूर हो सकें.
सबसे पहले बातें करते हैं ..अवकाशों के औचित्य की ..वो भी ऐसे समय में जब लंबित मुकदमों की संख्या करोडों का संखा छू रही है.. मोटे तौर पर तो लगता है की ..बिलकुल ..बल्कि सारी छुट्टियां समाप्त कर दी जानी चाहिए..मगर ये बात ध्यान में रखने वाली होती है की न्यायालयों और विशेषकर न्यायाधीशों का कार्य, कार्यप्रणाली,, अन्य किसी भी कार्य से सर्वथा भिन्न है. किसी भी अन्य कार्य,व्यवसाय या और किसी उद्यम में ,,किसी को निरंतर उतना मानसिक श्रम नहीं करना पड़ता..., नहीं मेरा मतलब है उस विशिष्ट रूप में नहीं करना पड़ता..एक एक मुकदमा किसी के जीवन मरण से सम्बंधित होता है..इसलिए लगातार मानसिक श्रम से थोडा सा अवकाश देकर उन्हें फिर से खुद को नवीन और स्फूर्त करने के लिए ही अवकाश की अव्धाराना को जीवित रकाहा गया है..
और ऐसा भी नहीं है की इन अवकाशों में सभी लोग पूर्ण तालाबंदी करके आराम फरमाते हैं..बल्कि पिछले कुछ वर्षों में तो अवकाश में अदालतों में इतने अलग अलग कार्यों को उनके अंजाम तक पहुंचाया जा रहा है की अवकाश की तो सार्थकता ही बन जाती हैं..दिल्ली की अदालतों में जहां पिछले कुछ वर्षों से अवकाशों में न्यायाधीशों को विशेष रूप से अभिलेखागार में पुराने वादों के रीकोर्डों की जांच करके ..जिनकी जरूरत नहीं होती उन्हें ..वहाँ से हटा कर ख़त्म करवाने का कार्य दिया जा रहा है. इसके अलावा उन्हें विशेष आदेश दिया जाता है की , वे अपनी अदालतों में वरिष्ठ नागरिकों के ,,महिलाओं के,, तथा बहुत पुराने मुकदमों
आदि को निपटाने का काम दिया जाता है..दरअसल ग्रीष्म कालीन अवकाश में सभी न्यायाधीश एवं कर्म्चारीगन बीच के अनुसार अवकाश पर जाते हैं....इसके अलावा विभागीय जांच , तथा और भी कई जिम्मेदारियां सौंप दी जाती हैं. इनसे अलग मध्यस्थता केंद्र , लोक अदालतें ,तथा सांध्यकालीन अदालतें..भी नियमित रूप से लगाईं जाती हैं.
जहां तक ,,कर्मचारियों की बात है ..तो वे भी इन दिनों अदालतों में तेजी से चल रही कम्प्यूटरीकरण के कार्य को अपने अंतिम मुकाम देने में लगे हैं..यानि कुल मिला कर छुट्टी का उपयोग किया जा रहा है.हालांकि इस बात की भी आवाजें उठ रही हैं की छुट्टियों को पूर्णतया ख़त्म करके अदालतों को निर्बाध चलने दिया जाए..कम से कम निचली अदालतों को तो अवश्य ही ...जो एक हद तक सही भी लगता है..
मुझे तो पूरे अवकाश काल में रोज ही न्यायालय जाना पड़ा और अपने कार्यालय को भी लगभग उतने ही समय चलाना पड़ा जितने समय हमेशा चलता है। अन्तर बस इतना था कि काम कुछ हलका था। लेकिन इस बीच बहुत से केसेज की फाइलें देख कर उन की तैयारी कर ली गई और बहुत से नए कानूनों और निर्णयों को पढ़ने का अवसर प्राप्त हो गया।
जवाब देंहटाएंसर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मारकण्डे काटजू ने अवकाश के बारे में कहा कि यह कनिष्ठ (जूनियर) वकीलों के आगे आने का अच्छा अवसर है ।
जवाब देंहटाएंमुझःए तो कुछ भी नही पता, इन सब के बारे,राम राम जी की
जवाब देंहटाएंbahut khoob !
जवाब देंहटाएंचलिये अच्छा बता दिया कि छुट्टियों का सदुपयोग होता है वरना तो हम मुगालते में थे कि ऐश चल रही है. आभार इस जानकारी के लिए.
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