रविवार, 26 जून 2011

दिल्ली की अदालतों में नियुक्त किए गए पारदर्शिता अधिकारी : कोर्ट कचहरी










पिछले कुछ वर्षों में आम लोगों का अपने अधिकारों के प्रति सजगता का ही परिणाम है कि एक के बाद एक बहुत से कानून और बहुत सारे अधिकार बनाए लाए जा रहे हैं । लागू होने के बाद से ही अब तक के बहुत कम समय में ही सूचना के अधिकार ने और आम लोगों द्वारा किए जा रहे उसके उपयोग ने बहुत सारी क्रांतिकारी परिवर्तनों की बुनियाद डाल दी है । अब लोग सूचना का अधिकार के तहत राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक के एक एक पाई का हिसाब न सिर्फ़ पूछ रहे हैं बल्कि आम जनता को भी सारा कच्चा चिट्ठा दिखाया जा रहा है । यही वजह है कि बंद कमरों के सारे राज़फ़ाश हो जाने और वो भी इतने सस्ते में ही खुल जाने के डर और आशंका से त्रस्त खुद सरकार तक इसमें बदलाव के लिए कम से कम तीन कोशिश तो कर ही चुकी है , लेकिन इसमें वो नाकाम रही है । इसी कडी को आगे बढाते हुए अब सरकारी महकमों में पूर्ण पारदर्शिता के लक्ष्य को उद्देश्य में रखते हुए ,पूर्ण पारदर्शिता की नीति और योजना को शुरू किया जा रहा है ।

इसीके तहत राजधानी दिल्ली की सभी जिला अदालतों में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के स्तर के न्यायिक अधिकारी की देखरेख में एक पारदर्शिता समिति का गठन किया गया है जिसका अध्यक्ष भी यही अधिकारी होगा । इस पारदर्शिता अधिकारी के जिम्मे न सिर्फ़ ये काम होगा कि अदालत से जुडे सभी कानूनी और प्रशासनिक कार्यों और कार्यप्रणालियों में पूर्ण पारदर्शिता के नियम का पालन हो बल्कि और भी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां इन्हें सौंपी गई हैं ।


पारदर्शिता अधिकारी के अधीन काम कर रही समिति , इस कार्य के लिए विशेष तौर से प्रशिक्षित और नियुक्त कर्मचारियों द्वारा एक ऐसा सूचना एवं सहायता डेस्क तैयार करेंगे जिसमें उस संस्थान से जुडे , उसके सभी क्रियाकलापों , नियम कायदों , कार्यप्रणालियों , सूचनाओं को एक साथ डाटा के रूप में सहेज कर रखा जाएगा । इसका उद्देश्य ये होगा कि , सबको इस सूचना और सहायता डेस्क की मदद से अधिक अधिक और लगभग सारी सूचनाएं मुहैय्या कराई जाएं ,ताकि आम आदमी को सूचना के अधिकार जैसे किसी दूसरे अधिकार के उपयोग की जरूरत ही न पडे ।
पारदर्शिता अधिकारी की भूमिका , सूचना के अधिकार के तहत पूछी गई जानकारी में भी बहुत अहम होगी । सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से असंतुष्ट रहने पर जब प्रार्थी प्रथम अपीलीय अधिकरण में पहुंचेगा तो उससे पहले पारदर्शिता अधिकारी पूरे मामले को देख कर ये तय करेगा कि कहीं उत्तर देने में जानबूझ कर कोई ऐसा उपाय तो नहीं ढूंढा गया है जो प्रार्थी को उसके संतोषजनक उत्तर पाने में अवरोध उत्पन्न कर रहा है ।यानि वो प्रथम अपीलीय अधिकरण में जाने से पहले ही प्रार्थी को एक बार और सुन सकेगा ।
सके अलावा संस्थान , उसकी कार्यप्रणाली , संस्था के अधिकारियों /कर्मचारियों , आदि से जुडी सलाह , सुझाव और शिकायत का भी निपटारा करने करने के लिए पारदर्शिता अधिकारी की सहायता ली जाएगी ।

सरकारी कामकाज में विशेषकर , न्यायालय , लाइसेंसिग ऑथौरिटि, पासपोर्ट दफ़्तर आदि जैसे तकनीकी विभागों में सरकार द्वारा इस तरह के प्रयोगों की शुरूआत को एक सकारात्मक लक्षण के रूप में लिया जाना चाहिए । किंतु इससे भी जरूरी है कि आम जनता को इन नियमों के बारे में न सिर्फ़ बताया समझाया जाए बल्कि इनके ज्यादा से ज्यादा उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाए ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. आरटीआई का सहारा लेने वाले सैकड़ों लोग बिहार में पिट चुके है,जेल भैजे गए हैं और कुछ का तो मर्डर भी हो चुका है। दैनिक हिंदुस्तान ने काफी समय तक इसके खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया था। स्वयं राजभवन में मेरे दो आरटीआई एक वर्ष से ज्यादा समय से लंबित हैं।

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  2. अच्छा कदम है। देखते हैं आगे आगे होता है क्या।

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  3. bhaijaan isse to bhtr hoga ke nyaayalyon me nyayly samy ki dekhrekh ke liyen cc circit camere laga diye jayen naayi naai kitne baal saamne aa jaayenge .....akhtr khan akela kota rasjthan

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  4. हालांकि मैं आपको बता दूं कि दिल्ली उच्च न्यायालय से अभी हाल ही में अवकाश प्राप्त हुए न्यायमूर्ति श्री शिव नारायण ढींगरा जी ने इस बात का सुझाव दिल्ली सरकार को पहले ही दे दिया है ,किंतु ये न सिर्फ़ अप्रायोगिक है बल्कि बहुत हद तक असुरक्षित भी , हां विशेष मुकदमों की प्रक्रिया और बहस इत्यादि की रिकार्डिंग की जा सकती है । फ़िर भी पारदर्शिता अधिकारी का कार्य सीधे सीधे जनता के लिए जिम्मेदार होना है । सुझाव और विचारों का सदैव स्वागत है

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  5. बहुत अच्छा कदम है मगर मेरे विचार से पारदर्शिता अधिकारी के अधीन काम कर रही समिति को आधुनिक संचार माध्यमों की सुविधा देकर उसके अधिकारीयों का पता, फोन नं., ईमेल को दिल्ली हाई कोर्ट या जिला अदालतों की वेबसाइट पर डालने के साथ ही समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर सार्वजनिक किया जाना चाहिए.कहीं ऐसा न हो कि पारदर्शिता अधिकारी के अधीन काम कर रही समिति मात्र एक ढकोसला बन न रह जाये,क्योंकि बहुत सी संस्थाएं बिना सुविधा और बजट के दिखावा साबित होती है.गरीब अपनी गरीबी की लड़ाई में इनके लिए समय ही निकल पता है.

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  6. आपके सुझाव अच्छे हैं राकेश जी , लेकिन किसी भी योजना की शुरूआत से पहले ही उसकी असफ़लता का आकलन करना थोडी जल्दबाजी सी होगी

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