शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

लापरवाह चालकों को अपराध बोध कराने के लिए हुआ है संशोधन

 




यह इस देश की नियति  बन चूका है की अब भी  जब बाकायदा बने हुए कानून को बेअसर पाकर उसमें  यथोचित और सामयिक  वृद्धि किए जाने भर से वाहन चालन के सबसे बुनियादी नियम " जान सबसे ज्यादा जरूरी है " में बांधने भर कि आशंका मात्र से विचलित आशंकित ट्रक बस चालकों के समूह ने हड़ताल कर इसका भरसक प्रतिरोध किया।  

इस बार सरकार द्वारा पारित आपराधिक कानूनों में किए गए संशोधन में इस अपराध जिसे अब तक गैर इरादतन मान समझ कर लोगों की जान तक लिए  जाने वाले हादसे /अरपाड़ों में बेतहासा वृद्धि को देखते हुए पहले की बहुत मामूली सी सजा को बढ़ाकर दस वर्ष सश्रम कारावास की सजा कर दिया , ये उन परिस्थितियों में के लिए रखा गया जब वाहन चालक दुर्घटना होने के बाद घायल या चोटिल व्यक्ति को छोड़कर भाग निकलते हैं।  

ज्ञात हो की हाल ही में परिवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी ने पिछले कुछ वर्षों में हुई सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों का आंकड़ा सामने रखते हुए दुःख जताया था कि सबके इतने प्रयासों के बावजूद भी दुर्घटनाओं में अपेक्षित कमी नहीं आई है।  परिवहन मंत्री ने भी यातायात नियमों के अनुपालन में सख्त कानूनों पर सहमति जताई थी।  

आंकड़ों के मुताबिक़ देश औसतन एक हज़ार से अधिक सड़क दुर्घटनाए प्रतिदिन जिनमें 450 से अधिक मौतें दर्ज़ की जाती हैं।  यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है की इस बीच जब विश्व में होने वाली दुर्घटनाएं और उनमें गई जानों की दर में वैश्विक स्तर पर पांच प्रतिशत की कमी आई दर्ज़ की गई तो वहीँ भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों में इसमें दस प्रतिशत से अधिक की दुखद वृद्धि दर्ज़ की गई है।  

ऐसे में व्यवस्था ये रख दी गई कि ये दुर्घटना होने के अगले चौबीस घंटे में वाहन चालक सबसे नजदीकी पुलिस को इस बात की जानकारी नहीं दे देता और छिपा कर रखता है , दुर्घटना में पीड़ित घायल चोटिल व्यक्ति को छोड़कर भाग जाता है तो ऐसे में उसके इस कृत्य को ज्यादा गंभीर मानते हुए अधिक कठोर सजा दिए जाने की व्यवस्था की गई है।  

इस नई व्यवस्था में जहाँ सरकार ने अन्य अपराधों की समाज में वृद्धि को देखते हुए सजा में भी कठोरता दिखाने की नीति के तहत ही दुर्घटना के कारण लोगों की मौतों के बढ़ते आंकड़े को देखते हुए वाहन चालकों में यातायात जिम्मेदारी का बोध कराने के लिए सजा को अधिकतम रखने की मंशा जताई।  वहीँ अभी कुछ दिनों पूर्व ही इसी केंद्र सरकार ने एक शानदार निर्णय लेते हुए सभी वाहन निर्माता कंपनियों से भविष्य में बनाए जाने वाले सभी बस और ट्रकों के केविन में वातानुकूलन की अनिवार्य व्यवस्था देने को कहा था तब यही वाहन चालक संघ और संगठन सरकार की तारीफों के पल बाँध रहा था।  

वास्तव में कानून और सजा के दुरूपयोग की आशंका से चिंतित परिवहन संघों और चालाक समाज को खुद ही आगे आकर सरकार।  प्रशासन के साथ उन उपायों पर चर्चा करनी चाहिए नीतियां नियम बनवाने चाहिए जिससे सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाइ जा सके।  पिछले कुछ समय में दुर्घटना के बाद वाहन चालकों के चोटिल व्यक्तियों और घायलों को वहीँ असहाय छोड़ कर भागने की बढ़ती प्रवृत्ति से दुर्घटना में समय पर चिकित्स्कीय मदद न मिल पाने के कारण जान गंवाने वालों की संख्या में वृद्धि ने सरकार और विधि निर्माताओं को इस और देखने करने पर विवश किया।  

इस सन्दर्भ में दो बातें बिलकुल स्पष्ट हैं , दुर्घटनाओं , वाहन चालकों द्वारा यातायात नियमों की अनदेखी अवहेलना आदि के कारण सड़क दुर्घटनाओं में लगातार हो रही वृद्धि तथा दुर्घटना के चोटिल/ घायल लोगों को समय पर समुचित सहायता न मिल पाने के कारण होने वाली मौतों की भी बढ़ती संख्या।  असल में वाहन चालकों को पकड़ पकड़ कर जेल भेज दिए जाने जैसा बताया और जताया जा रहा यह कानों वास्तव में दुर्घटना पीड़ित घायलों के प्रति दुर्घटना करने वाले वाहन चालकों को नैतिक दायित्व बोध कराना है। 

 " जीवन सर्वोपरि है , इसे हर हाल में बचाया जाना चाहिए " यही बुनियादी सिद्धांत है।  

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