रविवार, 6 जनवरी 2019

आखिर क्यूँ कम नहीं हो रहे लंबित साढ़े तीन करोड़ मुक़दमे -



आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि जब भी न्यायिक जगत के किसी कार्यक्रम में माननीय न्यायमूर्तियों को अपना संबोधन रखने का अवसर दिया जाता है , फिर चाहे वो अवसर कोई भी क्यूँ न हो वे एक बात का उल्लेख परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से जरूर कर जाते हैं और वो होता है कि , न्यायपालिका में साढ़े तीन करोड़ से अधिक मुकदमे ऐसे हैं जो निस्तारण की बाट जोह रहे हैं | और सबसे हैरानी और हास्यास्पद बात भी ये है कि ऐसा कम से कम पिछले एक दशक से अधिक से कहा जा रहा है | और ये भी कि , लगातार कहा जा रहा है |

ये स्थिति तब है जब देश भर में लगने वाली और  अब तो नियमित रूप से प्रतिमाह आयोजित की जाने वाली लोक अदालतों में हज़ारों और यहाँ तक कि लाखों मुकदमों के निस्तारण , मध्यस्थता केन्द्रों के माध्यम से भी हज़ारों मुकदमों के सुलह समाप्ति के आंकड़े भी लगभग साथ साथ ही आते रहे हैं तो फिर आखिर ये समस्या ज्यों की त्यों क्यों और कैसे बनी हुई है ?????

पिछले दो दशकों से अधिक से राजधानी की जिला अदालत में कार्य करते हुए , एक विधिक शिक्षार्थी के नाते और लगातार इस विषय पर सब कुछ पढ़ते देखते हुए जब मैंने इस विषय पर नज़र बनाई तो जो कुछ कारण स्पष्टतया मेरे सामने थे उन्हें सीधे सीधे ऐसे देखा जा सकता है

सबसे पहला और सबसे प्रमुख कारण : मुकदमों की आवक मुकदमों के निस्तारण से कई कई गुणा अधिक होना |

और इस बात को इस तरह से सरलता से समझा जा सकता है कि ये ठीक उस तरह से है जैसे जब तक एक थाली भोजन ख़त्म करने की कवायद होती है उतनी देर में वैसी दस बीस पचास थालियाँ अपने ख़त्म होने के लिए कतारबद्ध हो चुकी होती हैं | या फिर ये कहें जब तक एक बेरोजगार के लिए नौकरी की तलाश की जाती है उतने समय में पचास सौ बेरोजागार पंक्तिबद्ध हो चुके होते हैं |
हालाँकि इसके भी कई कारण हैं , और सबसे बड़ी हैरानी की बात ये है कि मुकदमों की आवक को कम कैसे किया जा सकता है ये विषय लंबित मुकदमों के निस्तारण हेतु किये जा रहे उपायों की फेहरिश्त में कहीं है ही नहीं |

अगले बहुत सारे कारणों में
प्रतिवर्ष बन और लागू किये जा रहे नए नए क़ानून
समाचार और सोशल मीडिया के माध्यम से अब इन कानूनों की जानकारी अवाम को होना
अदालत पहुँचने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने की संस्कृति का पनपना
अधिवक्ताओं की बढ़ती   संख्या
नशे ,बेरोजगारी आदि के कारण बढ़ते अपराध
बदलती हुआ सामाजिक परिवेश व टूटते सामाजिक बंधन
न्यायालयों , न्यायाधीशों की कम संख्या
बहुस्तरीय न्याय प्रणाली के कारण होने वाला दीर्घकालीन विलम्ब
वाद विवाद से इतर दिशा निर्देश और मार्गदर्शन पाने के लिए दायर किये जा रहे मुक़दमे
इनके अलावा और भी बहुत से ऐसे कारण हैं जिन पर बारीकी से सोचा और कार्य किया जाना बहुत जरूरी है ......अगली पोस्टों में इन पर विस्तार से चर्चा करेंगे 

1 टिप्पणी:

आपकी टिप्पणियों से उत्साह ...बढ़ता है...और बेहतर लिखने के लिए प्रेरणा भी..। पोस्ट के बाबत और उससे इतर कानून से जुडे किसी भी प्रश्न , मुद्दे , फ़ैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देना चाहें तो भी स्वागत है आपका ..बेहिचक कहें , बेझिझक कहें ..