गुरुवार, 15 सितंबर 2016

न्याय की भाषा : (सन्दर्भ हिंदी दिवस ) |


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न्यायिक जगत में हिंदी का प्रयोग प्रसार प्रभाव व् परिणाम एक ऐसा अछूता विषय रहा है जिस पर मंथन और विमर्श तो दूर अभी तक इसे विमर्श योग्य मुद्दा भी नहीं बनाया समझा जा सका है |जब भी अदालतों में हिंदी के प्रयोग किये जाने , यहाँ मेरा आशय न्यायालायीय प्रक्रियायों जैसे गवाही और बहस आदि में हिंदी के प्रयोग को लेकर है , की बात गाहे बगाहे सुनने में आती है तो वो ये कि फलानी याचिका को माननीय उच्चतम न्यायालय के फलाने आदेश द्वारा निस्तारित करते हुए वही निर्णय सुना दिया गया कि ,नहीं अभी वक्त नहीं आया है ||

आप और हम गौर से यदि देखें तो पायेंगे कि जो व्यवस्थाएं इस देश की बुनियादी नीतियों को तय करने के लिए स्थापित की गयी थी उसमें से बहुत सारी तो  ऐसी थीं जिनके लिए हमारे उन नीति निर्माताओं को यकीन था कि हम एक दशक में अपने गंभीर प्रयासों से उन तदर्थ व्यवस्थाओं से पूरी तरह निजात पाकर उनके लिए स्थाई व्यवस्थाओं या विकल्पों को तलाश लेंगे ,नौकरी में आरक्षण राजभाषा हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए के लिए किए जाने वाले प्रयास .आदि कुछ ऐसे ही कार्य थे जो एक दशक से लेकर अब सात दशकों के बीत जाने के  बावजूद  जस  का  तस  बना  हुआ  है  ||  

हिन्दी भाषी प्रदेशों जैसे बिहार , उत्तर प्रदेश , हरियाणा , राजस्थान आदि में  तो जिला अदालतों के स्तर पर हिंदी का प्रयोग बहुधा दिख भी जाता है किन्तु राजधानी दिल्ली की जिला अदालतें उसमें भी अपवाद हैं इसका कारण भी है | राजधानी दिल्ली में देश भर के लोग रहते हैं इसलिए स्वाभाविक रूप से अंगरेजी भाषा का ही प्रयोग किया जाता है | अलबत्ता पिछले कुछ समय में अदालतों में विशेषकर जन सूचना अधिकार के तहत पूछे गए प्रश्नों के उत्तर , समस्याओं व् शिकायतों का  उत्तर आदि किन्तु फिर भी ये ऊंट के मुंह में जीरे के सामान है | 

जब भी हिंदी के प्रस्चार प्रसार और प्रयोग को बढ़ावा देने की बात है विशेषकर प्रशासनिक निकायों में तो सबसे बड़ी कठिनाई बन कर सामने आती है वो है तकनीकी शब्दावली जो जाने अनजाने इतनी ज्यादा क्लिष्ट हो गयी है ,या शायद उसे आसान बनाने की कोशिश ही नहीं की गयी , कि आमजन तो दूर स्वयं अधिकारी और कर्मचारी तक कई बार परेशान हो जाते हैं | हालांकि सरकार , राजभाषा विभाग ,प्रकाशन विभाग , सहित बहुत सारे निकाय व् संस्थाएं इस दिशा में बरसों से काम कर ही रही हैं किन्तु ये प्रयास बहुत ही न्यून है |

जहां तक अदालतों में राजभाषा हिंदी के प्रयोग की बात है तो जब तक एक आम आदमी एक गरीब निरक्षर को अदालत में आकर वाद सूची में अपना नाम पढने में कठिनाई नहीं होगी , उसके नाम से अदालत से जाने वाला हर सम्मन , नोटिस आदि उसे अपनी भाषा हिंदी में वो भी आसान हिंदी में मिले , उसकी गवाही और जिरह हिंदी में भी हो सके ......तो ही हिंदी संतोषजनक स्थिति में कही जायेगी | और ऐसा अभी या भविष्य में हो पाना संभव हो पायेगा ...ये कहना और अभी कहना बहुत ही कठिन है | अभी के लिए तो माननीयों को सिर्फ यही कहा जा सकता है कि ...न्याय में देर भई ...अंधेर भई ...किन्तु कम से कम उसे निस्तारित तो राजभाषा हिंदी में ही किया जाए |

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