बुधवार, 1 दिसंबर 2010

कैसे कैसे मुकदमें ....कचहरीनामा ..एक कर्मचारी की नज़र से ..jha ji in court






आजकल मेरी नियुक्ति ..मोटर वाहन दुर्घटना पंचाट में है ..और रोज सैकडों मुकदमों से आमना सामना होता है ..अक्सर जब हर दुर्घटना में एक तरफ़ खडे पीडित या दुर्घटना में मृतक के आश्रितों को देखता हूं और दूसरी तरफ़ चालक , वाहन के मालिक और बीमा कंपनी को देखता हूं तो जाने कितनी ही बातें एक साथ दिमाग में घूमने लगती हैं । और् कई बार तो ऐसे ऐसे मुकदमें सामने आ जाते हैं जो स्तब्ध कर देते हैं । सोचा आज आपसे कुछ उन मुकदमों को बांटा जाए ..


एक मुकदमें में मृतक बालक जिसकी उम्र ग्यारह वर्ष की थी ..उसके पिता माता ने मोटर वाहन दुर्घटना क्लेम के तहत मुआवजे की मांग की थी । जब मुकदमें पर सरसरी तौर पर नज़र डाली तो देखा कि ...उस बालक की मौत का जो कारण था वो ये था कि ..खुद उसके पिता ने एक दिन सुबह ऑफ़िस जाने की जल्दी में गाडी को रिवर्स करते समय ..पीछे खडे उस बालक पर गाडी चढा दी ..फ़लस्वरूप उसकी मौत हो गई ....,मैं स्तब्ध था ....समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर उस पिता के दिल पर क्या बीत रही होगी ???


अब एक दूसरा मुकदमा देखिए ........एक तरफ़ थी मृतक बालक की मां ...घर में और कोई भी नहीं , न आगे न पीछे ....ओह इस संसार में अब वो निहायत ही अकेली ..असहाय और निराश सी दिखी ...और दूसरी तरफ़ वो बालक जिसने तेज गति से बाईक चलाते हुए ..उस बालक की जान ले ली थी और साथ खडी उसकी विधवा मां ..जिसने रोते हुए यही कहा कि वो प्रति माह किसी तरह से नौकरी करके पांच हजार कमा कर घर चला रही है ..और एक महीने की तनख्वाह दे सकती है मुआवजे के रूप में ..चूंकि दुर्घटना में लिप्त मोटर सायकल का बीमा नहीं था इसलिए वो मुआवजे की रकम उन्हें ही अदा करनी थी ...


एक और ..थोडा अलग और थोडा हटके ...पीडित ने आते ही हाथ जोड कर कहा ...जज साहब मुझे कुछ नहीं चाहिए इनसे ..दुर्घट्ना के समय से लेकर अब तक इन्होंने जो कुछ मेरे लिए किया है वो तो मेरा परिवार भी नहीं कर सकता था ....दिन रात न सिर्फ़ मेरा ख्याल रखा बल्कि , मेरे पीछे से मेरे परिवार का सुख दुख भी बांटते रहे ...इनसे अब मुझे कोई शिकायत नहीं है ...और दूसरा पक्ष जिसमें महिला चालक थीं और उनके पति वाहन मालिक के रूप में उपस्थित थे ..पीछे खडे थे दो युवा बच्चे जो मां बाप का साथ देने की गर्ज़ से खडे थे ..पूरी अदालत के लिए दोनों ही पक्षों के मन में आदर भाव स्वत: उत्पन्न हो गए थे ...

चलिए आज इतने ही दृश्य ...बांकी के फ़िर कभी ...

6 टिप्‍पणियां:

  1. हमने तो ऐसा भी देखा है कि वकील किसी भी वाहन का नम्बर लिखवा देते हैं, और फिर मालिक परेशान. पहले पैसा दे देते हैं और पर्सेन्टेज तय कर लेते हैं.
    एक और केस में पुलिस ने महिला की जगह एक ड्राइवर को खड़ा करा दिया.

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  2. नहीं भारतीय नागरिक जी ,
    कम से कम राजधानी में ये मुमकिन नहीं क्योंकि दुर्घटना के बाद पुलिस खुद तफ़्तीश के बाद वाहन का नंबर नोट करती है । हां दूसरी बात के लिए मैं असहमत नहीं हूं ।

    और इसमें कैसा आश्चर्य कि कि कोई महिला पुलिस द्वारा चालक के रूप में लाई गई ..क्योंकि राजधानी में तो ये आम बात है ।प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद

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  3. अच्छी भावनात्मक प्रस्तुती.........न्याय हमेशा न्यायिक मर्यादा को उच्च रखते हुए ही किया जाना चाहिए तभी उससे दोनी पक्षों को न्याय महसूस होता है और समाज में न्याय के प्रति सम्मान ........दुर्भाग्य से आज ऐसा कम ही हो रहा है......

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  4. bhai bade logo ke mamlwe mai agar mauke pe pakdaa nahee gaya to doosraa maamlaa jo bhaarteeya nagrik ne bataya hai laagoo hot hai. is naye prayaas ke liye aapko saadhuvaad

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. अच्छी भावनात्मक प्रस्तुती.......

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