पिछले कुछ समय से अदालतें अपना बोझ कम करने के लिए कई महात्वाकांक्षी योजनाओं पर काम कर रही हैं । एक बडी योजना के क्रियान्वयन के तहत पूरे देश भर की अदालतों में मेगा लोक अदालत के नाम से लगाई जाने वाली अदालतों का आयोजन किया जा रहा है । उसी योजना के तहत दिल्ली की अधीनस्थ न्यायालयों में इस रविवार यानि चौबीस अक्तूबर को मेगा लोक अदालत का आयोजन किया जा रहा है , जिसमें अब तक की जानकारी के अनुसार लगभग दो सौ न्यायाधीश .....कुल तीस हज़ार से अधिक मुकदमों का निपटारा करेंगे । इनमें , मोटर वाहन दुर्घटना क्लेम , १३८ के चैक बाऊंसिग के मुकदमे, पारिवारिक मुकदमे , चालान , दीवानी अपील आदि जैसे मुकदमों की सुनवाई होगी ।पिछले एक माह से इस मेगा लोक अदालत को सफ़ल बनाने के लिए , न सिर्फ़ पूरी न्यायिक मशीनरी , न्यायिक अधिकारीगण , सभी कर्मचारीगण , पुलिस , प्रशासन , सभी संबंधित निकाय युद्ध स्तर पर लगे हुए हैं । यहां तक की बीच में पडने वाले अवकाशों को भी अनाधिकारिक रूप से रद्द करके मेगा लोक अदालत के कार्य के लिए प्रयास किए जा रहे हैं । सूचना के अनुसार दिसंबर मध्य में ऐसी ही मेगा लोक अदालत छत्तीसगढ में लगाए जाने की योजना है और राजस्थान में भी । धीरे धीरे सभी राज्य अपने यहां इस तरह की अदालतों को लगाने का निर्देश दिया गया । यदि योजना मनोनुकूल रूप से चलती रही तो आगामी मार्च तक देश भर की अदालतों से कम से कम दस बारह लाख मुकदमों के समाप्त होने की संभावना दिखाई दे रही है । फ़िलहाल तो इसे एक प्रयोग की तरह आजमाया जा रहा है , और यदि ये सफ़ल रहता है तो फ़िर ऐसे प्रयासों को नियमित किया जाएगा । अदालत द्वारा की जा रही ऐसी पहल का नि:संदेह स्वागत किया जाना चाहिए ।
शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010
रविवार को दिल्ली की अदालतें निपटाएंगी तीस हज़ार मुकदमे
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न्यायलय द्वारा अवकाश में यदि लंबित प्रकरण निपटाए जाते है तो यह बहुत अच्छी पहल होगी ....
जवाब देंहटाएंरिमार्क - का आजकल ब्लागरों की वसीयत लिखबों का काम बंद कर दिहिन जी .... हा हा हा
ये तो बढिया खबर है जी
जवाब देंहटाएंप्रणाम
यह भी हमारी भ्रष्ट राजशाही और जर्जर न्यायव्यवस्था की एक और ढकोसलाबाजी है ! सिर्फ एक रविवार को तो दिखावे के लिए ये ३० हजार केशों का निपटारा कर देंगे और वैसे इनसे सालों तक एक केश सौल्व नहीं होता !
जवाब देंहटाएंगोदियाल जी ,
जवाब देंहटाएंआपका आक्रोश जायज़ है ..लेकिन सवाल ये है कि यदि हर छोटे बडे प्रयास को इसी तरह से कोसा जाता रहा तो फ़िर आखिर बदलाव आएगा कैसे ? क्या रातों रात सब कुछ बदल सकता है ? हो सकता है कि इस प्रयास से अपेक्षित परिणाम न निकले मगर फ़िर भी कोशिश तो की ही जा रही है