अभी हाल ही में न्यायपालिका ने ऐसे दो अहम फ़ैसले सुनाए जो दिनोंदिन महिलाओं के प्रति बढ रही हिंसा और हमलों के मद्देनज़र दूरगामी प्रभाव वाले साबित होंगे । पिछले दिनों विभिन्न फ़ैसलों से अदालतें जिस तरह से महिलाओं की सुरक्षा व संरक्षण में मुखर हुई हैं वह नि:संदेह स्वागतयोग्य कदम है । समाचार सूत्रों के अनुसार सर्वोच्च अदालत भी इस मसले पर बेहद गंभीर और संवेदनशील रुख अपना रही है । हालिया फ़ैसलों में अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि महिलाओं की सुरक्षा के र्पति न सिर्फ़ न्यायपालिका खुद गंभीर है बल्कि उसके रूख से ये भी स्पष्ठ है कि वो सरकार और प्रशासन को भी इस दिशा में विभिन्न योजनाओं व कानूनों का निर्माण्के लिए प्रेरित करने की ओर अग्रसर है ।
पिछले कुछ समय से महिलाओं व युवतियों के चेहरे तथा शरीर पर तेज़ाब से हमले की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है । कहीं एकतरफ़ा प्रेम से उपजी निराशा में तो कहीं किसी मानसिक कुंठा से ग्रस्त होकर महिलाओं के चेहरे पर तेजाब डालने जैसे घृणित अपराध पर चाह कर भी सरकार प्रशासन रोक नहीं लगा पा रहा था । अभी हाल ही में ऐसी ही एक वारादात को मुंबई रेलवे स्टेशन पर अंजाम दिया गया जिसके परिणाम में देश की एक बेटी जो सेना में अपनी सेवा देने पहुंची थी, की मौत हो गई । इससे पहले भी इस तरह की बहुत सारी घटनाएं होती रही हैं जिनमें किसी तरह अपना जीवन बचा सकी युवतियों का भविष्य अंधकार में चला गया । इन घटनाओं के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक वस्तु की खुलेआम बेरोक-टोक बिक्री । इसी दिशा में सरकार द्वारा नियम कानून बनाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने हेतु दायर याचिका पर फ़ैसला सुनाते हुए सरकार ने देश भर में तेज़ाब की बिक्री के मानक तय करने के लिए सरकार को आदेश दिया । इस आदेश के मद्देनज़र कुछ राज्यों ने इस पर अमल करना भी दुकानों पर खुलेआम तेज़ाब की बिक्री पर रोक लगाते हुए अब खरीदने वाले के लिए अपनी पहचान की राज्य सरकार ने भी तेज़ाब की दुकानों व गोदामों पर छापा मारकर अवैध तेज़ाब को ज़ब्त कर लिया ।
इसके अलावा कानून में संशोधन करके तेज़ाब हमले के लिए निर्धारित दंड को और अधिक कठोर बना दिया गया है । यदि इन सब पर सरकार व प्रशासन गंभीरतापूर्वक कार्य करें तो स्थिति में बदलाव की उम्मीद की जा सकती है । किंतु इसके अलावा एक जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य इस परिप्रेक्ष्य में किया जाना अभी बाकी है वो है तेज़ाबी हमले से पीडित युवतियों/महिलाओं की सुरक्षा, संरक्षण व उनके भविष्य के लिए उपाय करना ।
महिलाओं के हक में दूसरा जो अहम फ़ैसला आया है वो बलात्कार से पीडित युवतियों/महिलाओं के लिए सामाजिक कल्याण व सुरक्शह के लिए सरकार की आलोचना व सिस दिशा में नई व्यवस्था करने के लिए निर्देश । ज्ञात हो कि पिछले कुछ समय में देश में बलात्कार के बढते मामलों ने सरकार, समाज व अदालतों का ध्यान इस ओर खींचा है । अदालतों ने समय-समय पर अपने फ़ैसलों में इस घृणित अपराध से जुडे सभी पहलुओं पर निर्देश देकर सरकार व प्रशासन को इस दिशा में कार्य काने हेतु बाध्य किया है । इसी परिप्रेक्ष्य में देश भर में बलात्कार के मुकदमों का गठन । इसके साथ ही महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाओं द्वारा पीडिताओं को अधिक आर्थिक सहायता , स्वावलंबन सुरक्षा व संरक्षण हेतु योजनाओं की भी मांग उठाई जाती रही है ।
ज्ञात हो कि पिछले दिनों ,दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकार को ऐसा कोष बनाए जाने का आदेश दिया था जिससे पीडिताओं को एक माह के अंदर ही अंतरिम सहायता व मुकदमे के खर्च आदि के लिए आर्थिक सहायता मुहैय्या कराई जा सके । नए फ़ैसलों में अब अदालतें सज़ा सुनाते समय मुजरिमों पर लगाए जा रहे जुर्माने की राशि का एक हिस्सा भी पीडित शिकायतकर्ता को दिए जाने का आदेश दे रही है। किंतु माननीय सरोवोच्च न्यायालय के ताज़ा निर्णय से बलात्कार पीडिताओं के सामाजिक कल्याण व सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार द्वारा उठाए जाने का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा ।
भारतीय समाज के तेज़ी से बदल रहे परिवेश, रहन सहन में बढता उपभोक्तावाद, यौनिक स्वछंदता, लिव-इन-रिलेशनशिप , नशे व अपराध का बढता चलन आदि ने समाज को विशेषकर शहरी समाज को महिलाओं के प्रति अधिक क्रूर, गैर जिम्मेदार व संवेदनहीन बना दिया है । पाश्चात्य देशों से आयातित परंपरा के रूप में लिव-इन-रिलेशनशिप जैसी मान्यताओं को अपनाया तो जा रहा है किंतु रिश्तों के टूटने से उपजी परिस्थितियों में बलात्कार और शोषण आदि के मुकदमे तथा ऐसे रिश्तों से उत्पन्न संतानों का भविष्य व जिम्मेदारी उठाने जैसी स्थितियों से निपटने केल इए इन सबको सामाजिक दृष्टिकोण से देखना भी आवश्यक होगा ।
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि मौजूदा परिस्थितियों में न्यायपालिका ने यदि जनमानस के प्रति अपने विश्वास को बनाए रखा है तो उसकी एक बडी वजह ये भी है कि जिन कानूनों , जिन नीतियों , जिन उपायों , योजनाओं की उपेक्षा वो सरकार , अपने जनप्रतिनिधियों व प्रशासन से लगाए रहती है वो उन्हें न्यायपालिका के फ़ैसलों और उसके रूख में दिखाई दे जाती हैं । इन फ़ैसलों और इसके बाद इनके अमलीकरण से निकली योजनाओं व कानूनों का क्या कितना प्रभाव पडेगा ये तो भविष्य की बात है मगर इतना तो जरूर कहा जा सकता है कि न्यायपालिका के दोनों ही फ़ैसले बहुत ही सही समय पर आए हैं और जल्द से जल्द इनका अनुपालन राष्ट्रीय/राजकीय स्तर पर होना चाहिए ।
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