शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

बुरे फ़ंसे वकील साहेब....ऐसा भी होता है ।

कहते हैं कि कभी कभी चालें उलटी भी पड जाया करती हैं ...या यूं कहें कि शिकारी अपने जाल में खुद ही फ़ंस जाते हैं ...या ये कि किसी एक जगह से बचने के अनजाने में किया गया कोई काम उसे दूसरी जगह फ़ंसा देता है और ऐसी स्थिति जब बनती है तो क्या हाल होता है , आप खुद देखिये ।

मामला दिल्ली उच्च न्यायालय का है ,दरअसल हुआ ये कि एक व्यक्ति ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक मुकदमे में एक अर्जी दाखिल कर के कोर्ट के एक आदेश को वापस लेने या स्थगन देने का अनुरोध किया । उसने अपनी दलील में कारण ये दिया कि सुनवाई वाले दिन, वो और उसका वकील किसी कारण से शहर से बाहर थे सो अदालत मे उपस्थित नहीं हो सके । इसी के अनुरूप हलफ़नामे के साथ प्रार्थना पत्र दायर किया गया । और इस कारण अदालत ने उनके खिलाफ़ एक पक्षीय फ़ैसला सुना दिया था । मामला यहां तक तो ठीक था , और इस बाबत सूचनार्थ दूसरे पक्ष को भी नोटिस भेजा गया ।


अब दूसरे पक्ष की जानिये , दूसरे पक्ष ने सूचना का अधिकर के तहत उच्च न्यायालय रजिस्ट्रार कार्यालय से जानकारी मांगी कि क्या उस दिन उस व्यक्ति और उनके वकील क्या किसी भी मुकदमे में दूसरी किसी अदालत में उपस्थित हुए थे । बस जो जवाब मिला उसने दूसरे पक्ष के लिये मुसीबतें बढा दी। दूसरे पक्ष ने मय सबूत ये साबित कर दिया कि हलफ़नामा झूठा दायर किया गया है और वो व्यक्ति और उनके वकील साहब उस दिन न सिर्फ़ अदालत में उपस्थित थे बल्कि अदालत में किसी अन्य मुकदमे में उनकी हाजिरी भी दर्ज है ।

अदालत ने महापंजीयक उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि दोनों ( मुवक्किल और उनके अधिवक्ता ) के खिलाफ़ सी आर पी सी की धारा 195 के तहत शिकायत दाखिल की जाए । इतना ही नहीं अधिवक्ता द्वारा झूठे हलफ़नामे दिये जाने को गंभीरता से लेते हुए ..बार काउंसिल से उनके लाईसेंस को रद्द किये जाने की सिफ़ारिश की और साथ साथ 25 हजार का जुर्माना भी ठोंक दिया...।

हम क्या कहते ..बस यही निकला ..ओह बुरे फ़ंसे वकील साहब ।

1 टिप्पणी:

  1. वकील मूर्ख था। उस ने देखा कि अदालत तो अंधी होती है। लेकिन दूसरा पक्ष और उस का वकील तो अंधा नहीं होता। यहाँ दूसरे पक्ष ने होशियारी से काम लिया और सच सामने आ गया।

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