सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

मीडिया ट्रायल पर नकेल कसने की तैयारी

पिछले कुछ समय से , जब से मीडिया में तेज से तेज खबर दिखाने-सुनाने की होड की परंपरा की शुरूआत हुई है तब से मीडिया ,रिपोर्टिंग करने में, समाचारों को प्रस्तुत करने में , और घटना दुर्घटना के कारणों-परिणामों तक पहुंच जाने में ज्यादा ही गैर जिम्मेदार और लापरवाह हो गयी है। अन्य सभी जगहों पर तो फ़िर भी जानबूझ कर की गई इन गल्तियों, भूलों को एक हद तक क्षम्य माना जा सकता है किंतु अदालती मुकदमों में ये बहुत ही निर्णायक और कम से कम दिशा भटकाने वाले तो हो ही जाते हैं । अदालतों के बार बार आगाह किये जाने के बाद और कई बार कठोर चेतावनी दिये जाने के बाद, शायद व्यावसायिक लाभ के लोभ में मीडिया खुद को संयमित और नियंत्रित नहीं कर पा रही है ।किंतु अब ऐसा नहीं होगा।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में इस तथाकथित मीडिया ट्रायल पर नकेल कसने हेतु पहल कदम बढा दिया है । दरअसल अभी हाल ही में उच्च न्यायालय में विवादित पुलिस एनकाउंटर बटाला हाउस प्रकरण में मीडिया के पास कुछ अपराधियों के बयान की की पूरी सूचना लीक होने की बात पर विरोध जताते हुए न्यायालय से अनुरोध किया गया था कि , मीडिया द्वारा संवेदनशील मामलों में ऐसी लापरवाही दिखाने को प्रतिबंधित किया जाए। इसके साथ ही इस याचिक में पुलिस अधिकारियों द्वारा घटनाओं, अपराधों, के बाद प्रेस कांफ़्रेस बुला कर सभी बातों के खुलासे और विशेषकर अपराध और अपराधी के बारे में निर्णायक बयान जारी किये जाने को लेकर भी आपत्ति उठाई गयी थी। ज्ञात हो कि आरुषी मर्डर केस में ऐसी ही एक प्रेस कांफ़्रेंस में उत्तर प्रदेश पुलिस के सर्वोच्च पुलिस अधिकारी तक द्वारा इतन बचकाना बयान और कहानी सुनाई गयी कि बाद में उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने उन अधिकारी को वहां से हटा कर उसकी भरपाई की। और पुलिस के उस तथाकथित जांच का क्या परिणाम निकला , यह किसी से छुपा नहीं है।

माननीय उच्च न्यायालय ने प्रेस कांउसिल औफ़ इंडिया से आग्रह किया है कि ,इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए, अपने पत्रकारों को इस हेतु पर्याप्त प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करे ताकि जो भी लोग न्यायालय से जुडी कार्यवाही की रिपोर्टिंग करते हैं, आपराधिक घटनाओं की सूचना एकत्र करते हैं, उन्हें प्रस्तुत करते हैं। उन तमाम लोगों को इस बात का पूरा इल्म होना चाहिये कि इसका परिणाम क्या हो सकता है। इसके साथ ही पुलिस प्रशाशन को भी ये निर्देश दिये गये हैं कि वे भी अपने अधिकारियों को सिखायें कि .प्रेस को बुलाते समय और उन्हें सूचनी देते समय किन किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिये।कुल मिला कर न्यायालय चाहता है कि मीडिया ऐसी रिपोर्टों को कवर करते समय अपने लिये कुछ हद तय कर ले। अब देखना ये है अदालत के इन नये प्रयासों से देश के निरंतर भटक रहे मीडिया की आंखे कितनी खुल पाती हैं.....?


5 टिप्‍पणियां:

  1. आपको, आपके विषय पर लिखता देख कर ख़ुशी हुई.

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  2. अजय भाई एक नाम ,
    कोर्ट कचहरी एक काम ,
    कोर्ट कचहरी से निकल कर कोर्ट कचहरी का काम करना
    अपनी इस विरासत को निकल कर पूरा लेखन करना
    बकई एक अच्छा काम है

    अच्छा लगा कि अमर उजाला में आप का उजाला दिखाई दिया

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