जिस तरह से खुद अदालत ने अभी हाल ही में ...सूचना के अधिकार के तहत .....अपनी स्थिति को स्पष्ट किया ...उसने एक बार फ़िर न सिर्फ़ न्याय व्यवस्था ने अपना कद बडा कर लियी बल्कि ....पिछले दिनों जो उस पर एक अविश्वास की परत बैठाने की कोशिश की जा रही थी उस पर भी विराम लग गया.....और अब शायद ये इस प्रकरण का अंत भी था.....
अभी हाल ही में ...केन्द्र सरकार द्वारा एक महत्वाकांक्षी योजना के तहत देश भर की तमाम अदालतों में प्रचलित न्यायिक कार्यप्रणाली का अध्य्यन किया जा रहा है। इस उद्देश्य से सभी अदालतों से जानकारी एवम सुझाव मांगे गये हैं । इनके अध्ययन के बाद सरकार की योजना है कि वे कार्यप्रणालियां जो सबसे अधिक कारगर और प्रायोगिक होंगी उन्हें एक साथ ही पूरे देश की अदालतों मे लागू किया जायेगा। उदाहरण के लिये अभी बहुत से राज्यों मे शरद और ग्रीष्मकाल में अदालतों के काम करने का समय बदल जाता है। इसके अलावा, गवाही, दावों को उनकी वरायता के हिसाब से उनका निपटारे का नियोजन, और भी अन्य सभी पहलुओं पर विचार एकत्र किये जा रहे हैं। इसे अमली जामा पहनाने में कितना वक्त लगेगा , ये तो अभी तय नहीं है, मगर जिस दिन भी ये संभव हो सकेगा उस दिन निसंदेह ये बहुत ही लाभदायक कदम सिद्ध हो सकेगा।
शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009
देश भर की न्यायिक कार्य प्रणालियों का किया जा रहा है अध्य्यन
मैं इस ब्लोग की अपनी पिछली कई पोस्टों से इस बात का ज़िक्र कर हूं.....कि देर से ही सही अब सरकार न्यायिक ढांचे को नये सिरे से चुस्त दुरुस्त करने में संजीदा दिख रही है.....रह रह कर नये उपाय , नयी घोषणा , और बहुत सी योजनयें....सामने आ रही हैं....ये जरूर है कि फ़िलहाल अदालतों पर जो बोझ है उसे कम करने में फ़ौरी तौर पर शायद ये इतनी प्रभावी न लगें....मगर खुद न्यायालय में कार्यरत रहने के कारण अपने अनुभवों से इतना तो यकीन से कह सकता हूं कि ...भविष्य में इसका अच्छा परिणाम निश्चित रूप से सामने आने की पूरी संभावना है.....
इसी कदम के साथ साथ देश के सभी क्षेत्रों के न्यायिक अधिकारियो/न्यायाधीशों को भी ,राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में एक लंबी चलने वाली कार्यशाला के तहत आपस में मिल बैठ कर विचारों का आदान प्रदान, न्यायिक चुनौतियों पर विमर्श, नये पुराने कानूनों की उपयोगिता एवम सार्थकता पर बहस...आदि के लिये आमंत्रित किया जा रहा है। इसमें वे सब सौ सौ के बैच के अनुसार अलग अलग राज्यों से चुन कर राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में पहुंच रहे हैं तथा इस कार्यशाला में भाग ले रहे हैं। इस दीर्घकालीन कार्यशाला का शुभारंभ हो चुका है। इसके परिणाम क्या और कितने प्रभावी होंगे ये तो भविष्य ही बतायेगा। मगर इतना यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि अदालतों के ऊपर तो दायित्व आज है..उसका निर्वहन करने के लिये इस तरह के कार्यक्रम और प्रतिबद्धता तो दिखानी ही होगी..
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एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
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बहुत अच्छी जानकारी, काश ऎसा हो जाये, आगे अगर आप भी अपने लेख के शव्दो का रंग बदल कर काला या सफ़ेद कर दे तो ओर भी मजा आ जाये अभी पढने मै मुस्किल होती है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
राज भाई ..मैंने टेम्पलेट ही बदल दिया है...
जवाब देंहटाएंadhyayan yadi aparadh our shikayakkarta se kiya jata to shayed kuch vehtar hota.achha lekh.polished but impractical-sorry.
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