पिछले कुछ वर्षो में न्यायपालिका और कार्यपालिका कई बार बहुत सारे मुद्दों पर आमने सामने आये हैं...और बहुत से ...बल्कि अधिकाँश में ..न्यायपालिका ने स्वाभाविक रूप से कार्यपालिका ..सरकार..समाज ..को अपने फैसलों ..अपने विचारों ..और अपनी सहमती -असहमति से एक नई दिशा दी...लेकिन पिछले कुछ समय से एक मुद्दा जो कुछ ज्यादा ही उलझता जा रहा है ..वो है की न्यायाधीशों को भी अपनी संपत्ति-परिसंपत्तियों का खुलासा करना चाहिए...उपरी तौर पर ये बात बिलकुल
सीधी और स्पष्ट सी लगती है..किन्तु जिस तरह से एक के बाद एक बयान दोनों ही तरफ से आ रहे हैं उससे आम लोगों में एक भ्रम की स्थति बन गयी है..
दरअसल ये मुद्दा उतना भी सरल नहीं है ..की जैसा दीखता है..सभी न्यायाधीश अपनी अपनी संपत्तियों का खु़लासा करें और बात यही पर ख़त्म हो जाए..यदि न्यायपालिका की बात माने तो न्यायपालिका का कहना ये है की....ये ठीक है की अपने ही निर्णयों में वे ये कई बार ये घोषित कर चुके हैं की न्यायाधीश भी किसी आम जनसेवक की तरह जनता के प्रति उतना ही जवाबदेह है जितना कोई अन्य ...और मौजूदा प्रणाली (वर्तमान में जो प्रणाली है उसके अनुसार..सभी अधीनस्थ न्यायाधीश अपनी संपत्ति का ब्योरा लिखित रूप में एक दस्तावेज की तरह उच्च न्यायालय में प्रतिवर्ष जमा करवाते हैं..और सभी उच्च न्यायलय के न्यायाधीश ..सर्वोच्च न्यायलय में..सर्वोच्च न्यायलय के न्यायाधीश वही इसी तरह करते हैं..) में जबकि सभी से लिखित रूप से ये रिपोर्ट पहले ही ले ली जाती है है तो उसे सार्वजनिक करने के पीछे कोई उचित कारण नज़र नहीं आता..
न्यायपालिका का कहना है की उन्हें इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है की उन्हें अपनी संपत्तियों की घोषणा सार्वजनिक करनी होगी..बल्कि उन्हें दिक्कत ये है की सरकार या प्रशाशन कैसे ये सुनिश्चित करेगा की इन जानकारियों का गलत उपयोग नहीं किया जाएगा..उनका कहना है की चूँकि उनका कार्यक्षेत्र और कार्यप्रणाली विशिष्ट तरह की है..जिसके कारण उन्हें..समाज में रहते हुए भी समाज से अलग थलग रूप से रहना होता है...ज्ञात हो की वे किसी भी सार्वजनिक समारोह .में नहीं आ जा सकते....वे कहीं भी सार्वजनिक रूप से भाषण नहीं दे सकते..अदि से गुजरना होता है..इसलिए इसकी क्या गारंटी है की कल को निजी स्वार्थों के कारण कोई भी उन्हें किसी तरह से इन जानकारियों के लेकर उल्झायेगा नहीं. मौजूदा व्यवस्था में अभी इस मुद्दे पर किसी तरह का कोई नियम नहीं बनाया गया है .
अब दुसरे पहलु पर गौर करें. पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मामले सामने आये हैं ..उन्होंने न सिर्फ न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है ..बल्कि आम लोगों को ये सोचने पर मजबूर कर दिया है की जिस न्यापालिका को अभेद और अविश्वसनीय मान रहे थे..उसमें भी समाज में आ रही कुरीतियों .बदलावों और पतनात्मक प्रवृत्तियों का समावेश हो रहा है..यहाँ ये उल्लेखनीय है की पिछले एक वर्ष में ही पूरे देश में निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक लगभग पचास न्यायाधीशों पर अलग अलग तरह के मगर आर्थिक अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोप ही लगे हैं...इलाहाबाद और चंडीगढ़ न्यायालयों में जो कुछ हुआ उसकी तो कार्यवाही अब तक चल रही है..हालांकि इलाहाबाद प्रकरण में जैसी भूमिका न्यायपालिका ने निभायी ..की उसे भी एक बारगी कटघरे में खडा किया गया..जब सर्वोच्च न्यायलय की उस बेंच को ये कहा गया की उन पर लगे (मतलब न्यायाधीशों पर ) आरोपों की जांच वे खुद ही कैसे कर सकते हैं..और ये भी की सारी अदालती कार्यवाही बंद कमरे में क्यूँ की जाती है ..इससे खिन्न होकर .न्यायाधीशों की बेंच ने उस मुक़दमे को दूसरी बेंच को स्थानांतरित करते हुए खुले कमरे में उसकी सुनवाई का आदेश दिया और साथ ही ये भी कहा की अभी न्यायपालिका में इतनी सक्षमता है की वो अपनी कमियों को खुद ही ढूंढ कर दूर कर सके.
जहां तक एक आम आदमी का प्रश्न है तो वो यही सोच रहा है की आखिर सही कौन है और गलत कौन है....मामले को जिस तरह से पेश किया जा रहा है ..उससे आम जनता के सामने न्यायपालिका को कटघरे में खडा किया जा रहा है..जो की फिलहाल तो उचित नहीं जान पड़ता है..मुझे लगता है की न्यापल्की को चाहिए की वो सरकार से स्पष्ट कहे की वो इस स्मबंद में कोई ठोस नीती बनाए ..और जब तक नीति नहीं बनती तब तक इस प्रकरण पर कहीं कोई बहस या सार्वजनिक रूप से किसी तरह की कोई बयानबाजी नहीं होनी चाहिए....
अजय भाई, आप की एक और ऐसे ही विषय पर राय जानना चाहूंगा कि क्या सामान्यतः कोर्ट की कार्यवाही का सीधा दूरदर्शन पर प्रसारण करना चाहिए क्योंकि न्याय एक सामाजिक विषय है, जनता को पता होना चाहिये कि किस मामले में क्या प्रक्रिया चल रही है.... आपके विचारों का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंसादर
डा.रूपेश श्रीवास्तव
ज्यादा तर देशो मै सभी नागरिको को अपनी अपनी सम्पति, सरकार को घोषित करनी पडती है, जब सरकार चाहे, दुसरी बात जब हम टेक्स भरते है तो यह भी एक तरह से समपति घोषित होना ही है, लेकिन हमारे भारत मै ऎसे सभी कानून लोगपने मतलब से बना लेते है, जेसे नेताओ को समपति घोषित करने की जरुरत नही, अब न्यायाधीश को दिक्कत है, कल पुलिस ओफ़िसर को, फ़िर फ़ोजी ओफ़िसर को यानि सब लोग आजाद होना चाहते है कही से केसे भी कमाई करो , लेकिन कोई पुछने वाला ना हो.
जवाब देंहटाएंजो नेता कल तक जेबे काटता था, आज करोडो का मालिक है, कल तक भुखा मर रहा था... यह पेसा कहा से आया, मत पुछो.
प्रजा तंत्र देश मै सभी लोगो को अपनी ज्यादाद बताने का हक है, कि उस ने कहां से ओर केसे इतना धन इकट्टा किया, ओर यह हक हम सब ने मिल कर सरकार को दिया, ता कि हम सब सुखई रह सके, ओर कोई एक हमारा हक ना मारे.
डॉ.रुपेश जी... नहीं ऐसा संभव नहीं है...और शायद ठीक भी नहीं होगा..देश भर की अदालतों का कहाँ तक और कैसे प्रसारण हो सकेगा...यदि सर्वोच्च न्यायलय की भी बात करें तो भी नहीं हो पायेगा..दरअसल अदालती कार्यवाही में ऐसा कुछ होता भी नहीं है जिसका सीधा प्रसारण किया जाए तो जनता कुछ समझ पायेगी..यदि सिर्फ बहस ही देखना सुनना चाहते हैं तो भी नहीं..दरअसल जो अदालत पिक्चरों और सेरीयलों में दिखया जाता है उसे बहुत अलग होता है सब कुछ..और टी आर पी तो पहले दिन ही रसातल में चली जायेगी..उस सीधे प्रसारण की ..हां...हा..हा..प्रश्न दिलचस्प था....
जवाब देंहटाएंअच्छी बात बताई डॉ साहब के जबाब में..अक्सर ही अदालती कार्यवाही को लेकर हम जैसे आम जनों में फिल्मों वाली अदालत की छबी रहती है.
जवाब देंहटाएंमुख्य न्यायाधीश का कहना है कि उन्हें जजों की संपत्तियों की जानकारी सार्वजनिक करने में आपत्ति नहीं है। लेकिन इस के लिए कानून बनना चाहिए।
जवाब देंहटाएंअजी जी पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और अच्छी जानकारी ही नहीं जमीनी हकीकत से सच्चाई नज़र आयी .
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