जैसा कि मैंने अपनी पिछली पोस्ट में जिक्र किया था कि, अदालतों को मौजूदा हालातों और बढ़ते कार्यबोझ सहित भविष्य की जिम्मेदारियों से निपटने के लिए कई सारी उपायों पर एक साथ काम चल रहा है । इन्ही में से एक है अदालत में कार्यरत कर्मचारियों को चुस्त दुरुस्त करने के लिए हाल ही में जारी हुए कई सरे दिशा निर्देश। मैं पहले ही बता चुका हूँ कि अदालतों के कर्मचारियों को वर्दी, उनके नाम बैच, के साथ उनके कार्यकलाप और कार्यशैली को बेहतर करने के लिए कई कदम उठाये गए हैं, आज उस से आगे:-
अभी तक की मौजूदा प्रणाली के तहत चयन के बाद सभी कर्मचारियों को बिना किसी विशेष प्रशिक्षण के सीधे उनकी नियुक्ति अदालतों में कर दी जाती थी। चूँकि अदालती काम काज की तकनीकी प्रवृत्ति होती थी सो स्वाभाविक तौर पर जहाँ उन कर्मचारिओं को दिक्कत आती थी वहीं इस कारण न सिर्फ़ अदालत के काम काज पर फर्क पड़ता था बल्कि आम लोगन को भी खासी मुश्किल आती थी। नए दिसा निर्देश के मुताबिक अब ये सुनिश्चित किया गया है कि सभी कर्मचारियों को अदालतों में नियुक्त किए जाने से पहले कुछ अवधी के लिए प्रकशन दिया जायेगा। इससे भी महत्वपूर्ण ये कि सभी को इस बात के लिए भी प्रशिक्षित किया जायेगा कि उन्हें अदालत में आए लोगों से , गवाहों से, एवं वकीलों से किस तरह का शिष्ट व्यावहार करना है।
वर्तमान में सभी जिला अदालतों में कार्यरत कर्मचारियों की एक आम शिकायत है कि उन पर काम का बोझ बहुत ज्यादा है, जो एक हद तक सही भी है। इस समस्या से निपटने के लिए भी कई सारे ठोस कदम उठाये गए हैं। सबसा पहला तो ये है कि सभी अदालतों में कम से कम एक निश्चित संख्या तक कर्मचारियों की उपस्थिति अनिवार्य कर दी गयी है। फिलहाल ये संख्या आठ राखी गयी है। इसके साथी ही ये भी आदेश दिया गया है इस बात का पूरा प्रयास किया जाए कि किसी भी कर्मचारी के पास पाँच सौ फाईलों से ज्यादा का बोझ न रहे ।हलाँकि इसे मूर्त रूप दे पाना अभी सम्भव नहीं है। हालत का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि अभीa दिल्ली की कुछ अदालतों में कर्मचारियों के पास pआस प्रति कर्मचारी लगभग पाँच से दस हजार तक फाईलों का भार है। और भैविश्य में इस बोझ के कम होने का कोई उपाय होता नहीं दिख रहा है।
अभी कर्मचारियों को अपने दैनिक कार्यों के अलावा डाक पहुंचाना, जुर्माने की रकम को जमा करवाना, तथा और भी अन्य कई तरह के कार्य साथ साथ करने पड़ते हैं, किंतु नए दिशा निर्देशों के मुताबिक अब सभी अदालतों में इन कार्यों के लिए अलग कर्मचारियों की नियुक्ति की जाना तय हुआ है ताकि उनका नियमित काम बाधित न हो सके।
एक अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए पहली बार ओवर टाईम की बात कही गयी है। दरअसल अभी अधिक कार्यबोझ के कारण बहुत से कर्मचारियों को अपने निर्धारित कार्य घंटों से ज्यादा काम करना पड़ता है और कई बार तो छुट्टी के दिन भीआना पड़ता है, किंतु अब यदि उन्हें ऐसा करना पडा तो उन्हें इस बात के लिए ओवर टाईम दिए जाने का प्रावधान क्या जा रहा है ताकि उन्हें उनकी म्हणत का प्रतिफल मिल सके। फिलहाल ये नियम सिर्फ़ उच्च न्यायालयों में ही लागू है किंतु इसे जल्दी ही अधीनस्थ न्यायालयों में भे लागू किया जायेगा।
एक अन्य प्रावधान ये भी किया गया अहै की सभी विभागीय कार्यवाहियों के लिए विशेष रूप से सेवानिवृत न्यायाधीसों की नियुक्ति की जाए ताकि बरसों तक उनके फैसले की प्रतीक्षा न करनी पड़े। दरअसल अभी किसी भी विभागीय कारवाही की सारी सुनवायी और फैसला कार्यरत न्यायिक अधिकारिओं के जिम्मे ही रहता है इस वजह से उनके निपटारे में बहुत लंबा समय लग जाता है.
अब देखना ये है की इन सुधारों का आम जनता और न्यायिक प्रक्रिया को क्या और कितना फायदा मिलता है
अभी कर्मचारियों को अपने दैनिक कार्यों के अलावा डाक पहुंचाना, जुर्माने की रकम को जमा करवाना, तथा और भी अन्य कई तरह के कार्य साथ साथ करने पड़ते हैं, किंतु नए दिशा निर्देशों के मुताबिक अब सभी अदालतों में इन कार्यों के लिए अलग कर्मचारियों की नियुक्ति की जाना तय हुआ है ताकि उनका नियमित काम बाधित न हो सके।
एक अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए पहली बार ओवर टाईम की बात कही गयी है। दरअसल अभी अधिक कार्यबोझ के कारण बहुत से कर्मचारियों को अपने निर्धारित कार्य घंटों से ज्यादा काम करना पड़ता है और कई बार तो छुट्टी के दिन भीआना पड़ता है, किंतु अब यदि उन्हें ऐसा करना पडा तो उन्हें इस बात के लिए ओवर टाईम दिए जाने का प्रावधान क्या जा रहा है ताकि उन्हें उनकी म्हणत का प्रतिफल मिल सके। फिलहाल ये नियम सिर्फ़ उच्च न्यायालयों में ही लागू है किंतु इसे जल्दी ही अधीनस्थ न्यायालयों में भे लागू किया जायेगा।
एक अन्य प्रावधान ये भी किया गया अहै की सभी विभागीय कार्यवाहियों के लिए विशेष रूप से सेवानिवृत न्यायाधीसों की नियुक्ति की जाए ताकि बरसों तक उनके फैसले की प्रतीक्षा न करनी पड़े। दरअसल अभी किसी भी विभागीय कारवाही की सारी सुनवायी और फैसला कार्यरत न्यायिक अधिकारिओं के जिम्मे ही रहता है इस वजह से उनके निपटारे में बहुत लंबा समय लग जाता है.
अब देखना ये है की इन सुधारों का आम जनता और न्यायिक प्रक्रिया को क्या और कितना फायदा मिलता है
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