" जीवन सर्वोपरि है , इसे हर हाल में बचाया जाना चाहिए " यही बुनियादी सिद्धांत है।
पिछले कई वर्षों से न्यायिक प्रक्रियाओं तथा न्याय प्रशासन में परिवर्तन और सुधारों की कवायद में लगी केंद्र सरकार ने अब इस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र में तीन प्रमुख विधिक संहिताओं में वर्तमान परिदृश्य के अनुरूप नवीन परिवर्तन व सुधार के बाद , संशोधित करके सामयिक और परिमार्जित किया गया है। ज्ञात हो कि इन संहिताओं में परिवर्तन और सुधार की जरूरत बहुत सालों से महसूस की जा रही थी।
भारतीय दंड संहिता , दंड प्रक्रिया संहिता तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम – तीनों प्रमुख विधिक संहिताओं में वर्णित व्यवस्थाएं जो ब्रिटिशकालीन परिस्थितियों में बनाई व लागू की गई थीं। स्वतंत्रता के दशकों बाद तक औचित्यहीन होते जाने वाले बहुत से क़ानूनों को बदलने समाप्त किए जाने की जरूरत को पूरा करने के उद्देश्य से सरकार ने भारतीय न्याय संहिता , भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (प्रक्रिया संहिता ) , तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम को पारित कर दिया।
इन संहिताओं के परिमार्जन में सबसे अहम् जिस बात को रखा गया है वो है इसके प्रावधानों , व्यवस्थाओं और पूरी परिकल्पना वर्तमान परिस्थितयों परिवर्तनों के अनुरूप सामयिक और तार्किक किए जाएं। ब्रिटिशकालीन व्यवस्थाओं ,प्रक्रियाओं को परिष्कृत किया जाना विधि के शासन को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। स्वयं न्यायपालिका भी अपने समख विमर्श और मंतव्य के उद्देश्य से रखे हर प्रश्न को उसी सामयिक प्रासंगिकता और सामाजिक व्यवहार में हुए परिवर्तनों की कसौटी पर अनिवार्य रूप से परखती अवश्य है।
प्रक्रिया से लेकर दंड प्रावधानों तक में परिवर्तन के बाद बहुत सी नवीन व्यवस्थाएं दी गई हैं , जैसे एक तरफ जहां अपराधों के लिए विशेषकर व्यक्ति समाज देश के विरुद्ध किए गए अपराधों में सज़ा को अधिक कठोर किया गया है वहीँ पहली बार अस्पताल , यातायात , सामुदायिक केंद्रों आदि में समाज सेवा या सामुदायिक सेवा का दायित्व दिया जाना को सुधारात्मक सजा विकल्प के रूप में शामिल किया गया है।
किसी भी परिवार ,समाज देश की शान्ति , सद्भाव और सबसे जरूरी सुरक्षा के लिए आवश्यक तत्व -विधि का शासन। यानि समाज सम्मत नीति नियमों का अनुपालन। अपराध संहिता में पहली बार आतंकवाद की व्याख्या को व्यापक करके समाहित किया गया है। देश की आर्थिक सुरक्षा को क्षति पहुंचाने का कार्य , भारतीय मुद्रा की नक़ल आदि से क्षति आदि को भी दायरे में लाया गया है।
महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध करने वालों पर और अधिक दृढ़ कठोर होकर ऐसे अपराधों को अधिक जघन्य मान कर दंड अधिक कठोर और इन अपराधों में अभियोजन , कार्रवाई को तीव्र करने विषयक परिवर्तन समायोजित किए हैं। पिछले दिनों आवेश में उन्मादी भीड़ द्वारा पीट पीट कर की गई हत्याओं -मॉब लॉन्चिंग को भी बर्बर अपराध मानकर अधिकतम दंड -मृत्यदण्ड देने का प्रावधान किया गया है। साक्ष्य अधिनियमों में बुनियादी सुधार करते हुए सभी उन्नत तकनीकों के उपयोग और वैज्ञानिक परिणामों को विधिक मान्यता देने विषयक संशोधन भी किए गए हैं।
केंद्र सरकार ने जल्दी ही पूरे देश के लिए समान नागरिक संहिता यानि UCC Uniform Civil Code , को लाने की तैयारी में है । ज्ञात हो कि अभी कुछ राज्यों में होने जा रहे विधान सभा चुनावों से पहले ही भाजपा शासित राज्यों ने गुजरात , हिमाचल आदि ने बाकायदा घोषणा पत्र में इस बात का संकल्प लिया है ।
इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए कल सरकार ने नए विधि आयोग का गठन कर दिया ।विदित हो कि , विधि आयोग का गठन 4वर्षों के बाद किया गया है व कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति श्री आर आर अवस्थी को विधि आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है ।
विधि आयोग का गठन पिछले चार वर्षों से लंबित था । श्री अवस्थी को अध्यक्ष बनाए जाने के अतिरिक्त न्यायमूर्ति के टी संकरन, प्रोफेसर आनंद पालीवाल , प्रोफेसर रेखा आर्य ततहा एम करुणानिधि को सदस्य के रूप में नामित किया गया है ।
केंद्र सरकार ने विधि आयोग के गठन के लिए दायर जनहित याचिका के उत्तर में अदालत को बताया था कि जल्दी ही विधि आयोग का गठन कर , समान नागरिक संहिता का मामला विधि आयोग के पटल पर रखा जाएगा ।