शनिवार, 8 नवंबर 2008

वकालत : गरिमा खोता एक विशिष्ट पेशा


पिछले दिनों वकालत से जुडी कुछ घटनाएं एक के बाद एक ऐसी घटती चली गयी, की उन्होंने मुझे मजबूर कर दिया की मैं सोंचू की आख़िर कभी समाज का अगुवा बना एक विशिष्ट और प्रबुद्ध वर्ग में आख़िर ऐसा क्या आ गया की आज स्थिति ऐसी बन गयी है, और तो और राजधानी की अदालतों में पिछले कुछ महिनू में नकली वकीलों की घटना ने तो सकते में डाल दिया है ।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. वकील ,पत्रकार और नेता एक ही थैली के चट्टे - बट्टे हैं । इन पेशों को किसी ज़माने में इज़्ज़त की नज़र से देखे जाते थे लेकिन सामाजिक बदलावों का रंग कुछ ऎसा चढा कि इनके बीच का फ़र्क खत्म हो गया । अब तो थ्री इन वन का ज़माना आ गया है । वकील ही नेता ,नेता ही पत्रकार या यूं कहें पत्रकार ही नेता । पेशे की गरिमा में गिरावट इसी लिए है ।

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  2. कुछ लोगों के गोरखधंधों से पूरे पेशे की गरिमा नहीं जाती.

    बेहतर वकीलों की संख्या तो इनसे कहीं ज्यादा है अजय बाबू. उनके उत्कृष्ट कार्यों को प्रकाश में लाईये.

    आभार इस प्रस्तुति के लिए.

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  3. aap dono kaa bahut bahut dhanyavaad. sameer bhai, achha to har haal mein achha hee rahtaa hai, fir jaroorat to buraaee ko dhoondhne aur door karne kee hotee hai, padhne aur saraahne ke liye dhanyavad.

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