सोमवार, 28 दिसंबर 2015

कड़कड़डूमा कोर्ट शूटआउट : कुछ सवाल , कुछ सबक


कोर्ट परिसर का मुख्य गेट 


अदालती कैलेण्डर मे आख़िरी कार्यदिवस , दिनांक २३/१२/२०१५ , समय तकरीबन ग्यारह से बारह के बीच , अचानक ही पूरे अदालत परिसर में गहमागहमी बढ़ जाती है , बहुत सारे अधिवक्ता , अदालत में अपने अपने कामों से पहुंचे हुए लोग और बहुत सारे कर्मचारी भी एक तरफ को भागते दिखते  हैं | मिनटों में ही ये खबर सब तक पहुँच जाती है कि न्याय कक्ष संख्या ७३ में गोलीबारी हुई है जिसमें एक व्यक्ति की वहीं मृत्यु हो गयी है व दो अन्य घायल हैं |

पूरा मामला ये निकला कि , एक गैंग लीडर जो कि अपने ऊपर चल रहे मुक़दमे के दौरान अदालत में पेश किया गया था उसे मारने के लिए उसके प्रतिद्वंदी गैंग वालों ने चार अवयस्क लड़कों को उसके क़त्ल के लिए भेजा था | उन्होंने अंदाज़े से अपने शिकार को पहचानते हुए बिलकुल फिदायीन तरीके से उस पर कोर्ट की चलती कार्यवाही के बीच अंधाधुंध  फायरिंग झोंक दी | बीच में जो हुआ वो यही कि उस गैंग लीडर के अलावा दो और लोग उसका शिकार बने | एक हेड कांस्टेबल की मौत और दूसरा घायल |

अदालत परिसरों में इस तरह की दु:साहस भरी घटनाएं इससे पहले भी कई बार देखने सुनने को मिलती रही हैं और अपराध व् अपराधियों की उपस्थति को देखते हुए इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता | किन्तु अदालत कक्ष के भीतर न्यायाधीश के सामने बेख़ौफ़ होकर इस तरह की नृशंस हत्या करने की ये अपने तरह की पहली वारदात थी | इस घटना के बाद सुरक्षा चूकों व् खामियों को लेकर हुई बैठकों के बाद बेशक भविष्य में ऐसी किसी भी घटना की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कदम उठाये जायेंगे , उठाये जाने भी चाहिए , किन्तु इससे अलग और भी कुछ है जिस पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी है |

वो ये कि , ये घटना स्पष्टत : ये साबित कर रही है कि बेशक हमारे पास कानूनों का एक पूरा जखीरा मौजूद हो लेकिन फिर भी वो अपराधियों के मन में क़ानून के प्रति खौफ या डर पैदा करने में नाकाम रहे हैं | गौरतलब है कि शूट आउट में लिप्त ये तरूण भी उसी जुवेनाईल जस्टिस एक्ट के आड़ में पूरे समाज के लिए एक अनजस्टिस कर जायेंगे | अभी तक का अनुसंधान ये इशारा कर रहा है कि इन नाबालिगों ने पूरी योजना के साथ को अंजाम दिया है और इससे पहले भी वे सरेआम इस तरह की वारदात कर चुके थे | तो कानून से जुड़े हर व्यक्ति , हर संस्था और हर शोध को अब इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि आखिर क़ानून का सबसे अहम् मकसद ,समाज में शान्ति व् निर्भयता का माहौल बनाए रखना, ही पूरी तरह से विफल होता क्यों जान पड़ता है |कल्पना करिए कि बाल बाल बचे न्यायाधीश यदि इसकी चपेट में आ जाते तो ये विश्व में खुद सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बनाने की मांग रखने वाले देश की इज्ज़त पर लगे  किसी तगड़े बट्टे से कम नहीं दिखता |


जहां तक सुरक्षा में हुई चूक या विफलता की बात है तो उसके लिए पहली जिम्मेदारी सुरक्षा जांच में नियुक्त सुरक्षाकर्मी व् अन्य सभी सम्बंधित अधिकारी जिनके पास अब बेशक अपनी मजबूरी और लापरवाही को छिपाने के लिए लाख बहाने मिल जाएँ मगर असलियत तो यही है कि कोर्ट की सुरक्षा व्यवस्था कभी भी इतनी पुख्ता भी नहीं रही कि उसे मुकम्मल कहा या माना जाए | सिर्फ एक पल को कल्पना की जाए कि यदि इस तरह से फिदायीन हथियार समेत न्यायालय परिसर में दाखिल होकर कत्ले आम मचा देते  तो स्थिति कितनी भयावह हो सकती थी | 

पर्याप्त रूप मे सुरक्षा कर्मियों की ड्यूटी , परिसर और अदालत कक्ष में भीतर जाने के लिए एक समुचित और सुनियोजित व्यवस्था ताकि गैर सम्बंधित लोगों की उपस्थति की संभावनाओं को कम किया जा सके और आजकल ऐसे सार्वजनिक भवनों और उनमें कार्यरत लोगों की सुरक्षा के लिए विश्व में उपयोग की जाने वाली बेहतरीन तकनीकों का उपयोग आदि कुछ ऐसे कदम हैं जो फौरी तौर पर निश्चित रूप से उठाये जाने चाहिए | 

स्थिति में कितना क्या बदलेगा ये तो भविष्य के वर्षों में देखने वाली बात होगी बहरहाल कचहरी में काम करते हुए बहुत सारी वजहों से सहेजे हुए दिनों में से एक दिन ये भी ......

7 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे घटनाएँ आम आदमी के भरोसे को कमज़ोर तो ज़रूर करती हैं । यूँ भी सुरक्षा तो सवाल ही बन गई है चाहे न्यायिक परिसर ही क्यों ना हो ?

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    1. सच कहा आपने | प्रतिक्रिया देने के लिए आभार और शुक्रिया डाक्टर साहिबा

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  2. घटना दुर्भाग्य पूर्ण है l लेकिन जहाँ तक आम आदमी के भरोसे का प्रश्न है , वह न्यायलय से वास्ता न पड़ने तक ही बना रहता है l आप कचहरी में काम करते हैं तो अच्छी तरह समझते हैं कि व्यवस्था में सबसे बड़ी काजल की कोठरी कौनसी है

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    1. आपने ठीक कहा चिराग तले अँधेरे वाली ही बात है

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  3. यह एक दुखद सत्य है कि अपराधी वर्ग में क़ानून का कोई डर नहीं है, यह विचारणीय है कि इसके लिए कौन उत्तरदायी है...

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    1. हाँ ये दुखद सत्य ही तो है ..रही जिम्मेदारी की बात तो कहीं न कहीं हम सब ही जिम्मेदार हैं

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  4. बहुत बहुत शुक्रिया और आभार कविता जी आपका

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