शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती हैं पारिवारिक अदालतें


हाल ही में दिल्ली की कुछ अधीनस्थ न्यायालयों में पारिवारिक अदालतों की स्थापना की गई है जो अपने तरह की इस तरह की पहली अदालतें हैं । हालांकि राजधानी की प्रत्येक जिला अदालतों में पहले से ही गुजारा भत्ता, तलाक और गार्जियनशिप अदालतों का गठन किया जा चुका है जो सफ़लतापूर्वक अपना काम कर भी रही हैं । किंतु इन नई तरह की अदालतों का गठन मध्यस्थता के आधार पर और तोडो नहीं जोडो की नीति का पालन करने के लिए किया गया है ।

ज्ञात हो महानगरीय जीवन में पारिवारिक रिश्तों में आ रही खटास और शादी जैसी संस्थाओं के लगातार टूटते जाने का दर किस कदर बढ रहा है इस बात का अंदाज़ा सिर्फ़ इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में पारिवारिक मुकदमों से निपटने वाली सिर्फ़ एक अदालत में ही प्रति माह सौ से अधिक तलाक के मुकदमे निपटाए जा रहे हैं । ये आंकडा ही साबित कर रहा है कि शहरी जीवन में परिवार , विवाह जैसी संस्थाओं पर से लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है जिसके बहुत से वाजिब और गैर वाजिब कारण हैं ।

पिछले कुछ वर्षों में अदालतों में बढते दबाव को कम करने के लिए , वर्षों से चली आ रही और हमारी ग्राम्य न्याय व्यवस्था की एक प्रमुख प्रणाली मध्यस्थता को भी अपनाने की शुरूआत की गई । सभी जिला अदालतों एवं उच्च न्यायालयों में पहले अस्थाई और फ़िर स्थाई मध्यस्थता केंद्रों की स्थापना की गई । यहां उन मुकदमों को भेजने की प्रक्रिया शुरू की गई जिनमें समझौते की गुंजाईश थी । इस बात का पूरा ध्यान रखते हुए कि दोनों पक्षों को अदालती माहौल से अलग वातावरण लगे इसके विशेष प्रशिक्षण प्राप्त न्यायिक अधिकारियों , अधिवक्ताओं , कानूनविदों की इन मध्यस्थता केंद्रों में नियुक्ति की गई । इसका परिणाम अपेक्षा से कहीं बेहतर निकला । विशेषकर पारिवारिक वादों में तो इसकी सफ़लता देखने लायक थी ।

इन्हीं सफ़लताओं को देखते हुए दिल्ली में नई पारिवारिक अदालतों की स्थापना की गई है । इन अदालतों में विशेष रूप से बैठने के लिए आरामदायक कक्षों के अलावा , मनोरंजन के लिए टीवी कंप्यूटर युक्त एक मनोरंजन कक्ष , मनोचिकित्सकों की टीम से लैस एक काऊंसिलिग कक्ष तथा और भी कई सुविधाओं से इन्हें सज्जित किया गया है । इन पारिवारिक अदालतों में . जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि ,पारिवारिक मुकदमें, तलाक अर्जियां, गुजारे भत्ते के लिए डाले गए दावे , बच्चों की अधिकारिता (गार्जियनशिप ) के मुकदमे आदि को निपटाया जाएगा । ये पारिवारिक अदालतें इस लिए भी शुरू की गई हैं ताकि उन मामलों को विशेषज्ञों की देखरेख और सलाह से निपटाया जाए जिन्हें अदालती कार्यवाहियों में नहीं निपटाया जा पाता है या फ़िर कि सालों साल लग जाते हैं , कोशिश ये की जानी है कि परिवार टूटने की जगह दोबारा एक हो जाएं । निसंदेह ये अदालतें आने वाल समय में क्रांतिकारी साबित होंगी ॥

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

न्यायिक क्षेत्र में आई टी का उपयोग


कल परसों ही हमारे कोर्ट को पहले कोर्ट ( जिला न्यायालयों में ) शुरू करने की उपलब्धि हासिल हुई इससेपहले ऐसी ही उपलब्धि दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी अर्जित की थी पिछले एक दशक में जिस तरह से सूचनाविज्ञान का उपयोग न्यायिक क्षेत्र में बढा है वो अपने आप में एक बहुत बडी बात है अदालतों में पूर्णत: कंप्यूटरीकरण की प्रक्रिया, सभी अदालती कार्यवाहियों को प्रतिदिन इंटरनेट पर उपलब्ध कराना , इतना ही नहीं सभी अदालती आदेशों और फ़ैसलों को नियमित रूप से , बल्कि अब तो पिछले पचास वर्षों में हुए सभी फ़ैसलों कोभी उपलब्ध करने जैसे सभी काम बखूबी हो चुके हैं इनके अलावा वीडियो कांन्फ़्रेंसिग से मुकदमों की सुनवाई , और अब ये कोर्ट कुल मिला कर ये कहा जा सकता है कि आधुनिक युग में उपलब्ध सभी सूचना तंत्रों काउपयोग और सहायता न्यायिक स्तंभ को लैस करने के लिए किया जा रहा है
अपने कार्यकाल में मैंने ये बदलाव होते हुए देखे हैं और सच कहूं तो बखूबी इसका फ़र्क भी महसूस किया है , मगरजब पाले के दूसरी तरफ़ जाके एक आम आदमी की तरह देखता हूं तो सोचता हूं ,ये विश्लेषण करता हूं कि क्यावाकई सूचना तकनीक ने आम आदमी को उसके न्याय पाने में थोडी बहुत सहायती की है मुझे लगता है कि कुछया बहुत सीमित फ़ायदा वो भी अप्रत्यक्ष रूप से हो पाया है अन्यथा ...इन तकनीकों का मुकदमों के तीव्रनिष्पादन से कोई प्रत्यक्ष संबंध मुझे तो नहीं दिखा

जब मैंने अपनी नौकरी शुरू की थी तो अदालतों में सारा कामकाज टाईपराईटर द्वारा ही किया जाता था , औरजाहिर सी बात है कि कंप्यूटर के मुकाबले उसकी क्षमता और परिणाम बहुत ही कम था मगर कंप्यूटर आने से बेशक अदालती कर्मचारियों मतलब , रिकार्ड रखने वाले कर्मचारियों तथा अदालती कार्यवाहियों को दर्ज़ करने वालेआशुलिपिकों की रफ़्तार और गुणवत्ता में बहुत ही क्रांतिकारी परिवर्तन आया मगर एक आम आदमी जो न्यायकी तलाश में सालों साल अदालत के चक्कर काटता है उसे इन परिवर्तनों का कितना फ़ायदा पहुंचा ...इसमें खुदमुझे ही संदेह होता है हां उच्च एवम उच्चतम न्यायालयों के आदेशों की उपलब्धता ने न्यायाधीशों को मुकदमों केनिष्पादन और सामयिक न्याय करने में जरूर ही सहायता पहुंचाई होगी हालांकि अभी तो ये न्यायिक क्षेत्र कोतकनीक सबल करने की प्रक्रिया चल रही है इसलिए अभी ही इसकी सफ़लता विफ़लता का आकलन करना शायदथोडी जल्दबाजी होगी और इसे अभी समय देने की जरूरत है , लेकिन इसके बावजूद मुझे लगता है कि इन उपायोंऔर प्रयासों से बेहतर है कि नई अदालतों के गठन पर ....और उनकी बहुतायत पर ही ज्यादा ध्यान दिया जाए तोज्यादा सार्थक परिणाम आएंगे इसके अलावा ...प्ली बारगेनिंग , मध्यस्थता केंद्रों , लोक अदालतों , और कानूनी जागरूकता शिविरों जैसे प्रयासों को भी बढावा दिया जाए तो बेहतर होगा

अगली कडियों में देखेंगे कि ...कुछ तकनीक जो जाने किन कारणों से विफ़ल हो रही हैं और कुछ तकनीक जिनकाउपयोग क्रांति ला सकता है
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